Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
उन में स्पष्ट कहा है कि-पुरुष के दहिने अंग में और स्त्री के बांयें अंग में लक्षणों को देखना चाहिये, इसी प्रकार जो २ अंग प्रस्फुरण ( अंगों का फड़कना) आदि अंग सम्बन्धी शकुन माने गये हैं वे पुरुष के दहिने अंग के तथा स्त्री के बांयें अंग के गिने जाते हैं, तात्पर्य यह है कि लक्षण आदि सब ही बातों में पुरुष से स्त्री में ठीक विपरीतता मानी जाती है, इसी लिये संस्कृत भाषा में स्त्रीका नाम वामा है, अतः पुरुष का दहिना अंग प्रधान है और स्त्री का बांयां अंग प्रधान है, इस लिये पुरुष के दहिने हाथ की और स्त्री की बांयें हाथ की नाड़ी देखने की रीति है, बाकी तो दोनों हाथों में धोरी नस का किनारा है और वैद्यक शास्त्र में दोनों हाथों की नाड़ी देखना लिखा है । (प्रश्न) हम ने बहुत से वैद्यों के मुख से सुना है कि-नाभिस्थान में बहुत सी नाड़ियों का एक गुच्छा कछुए के आकार का बना हुआ है, वह पुरुष के सुलटा ( सीधा और स्त्री के उलटा मुख कर के रहता है इस लिये पुरुष के दहिने हाथ की और स्त्री के बांये हाथ की नाड़ी देखी जाती है। (उत्तर) इस बात की चर्चा मासिकपत्रों में अनेक वार छप चुकी है, तथा इस बात का निश्चय हो चुका है कि-नाभिस्थान में नाड़ियों का कोई गुच्छा नहीं है. इस के सिवाय डाक्टर लोग ( जो कि शरीर को चीरने फाड़ने का काम करते हैं तथा शरीर की रग रग से पूरे विज्ञ ( वाकिफ हैं ) कहते हैं कि-"यह बात बिलकुल गलत है", भला कहिये कि ऐसी दशा में नाभिस्थान में नसों के गुच्छे का होना कैसे माना जा सकता है ? इस लिये बुद्धिमानों को अब इस असत्य बात को छोड़ देना चाहिये, क्योंकि प्रत्यक्ष में प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है।
त्वचापरीक्षा-त्वचा के स्पर्श से शरीर की गर्मी शर्दी तथा पसीने आदि की परीक्षा होती है, इस का संक्षेप से वर्णन इस प्रकार है१-दोषयुक्त चमड़ी-वायुरोगवाले की चमड़ी ठंढी, पित्तरोगवाले की गर्म
और कफरोगवाले की भीगी होती है, यद्यपि यह नियम सर्वत्र नहीं होता है तथापि प्रायः ये (ऊपर लिखे) लक्षण होते हैं । २-गर्म चमड़ी-पित्त और सब प्रकार के बुखारों में चमड़ी गर्म होती है,
चमड़ीकी उष्णता से भी बुखार की गर्मी मालूम हो जाती है परन्तु अन्तवेंगी (जिस का वेग भीतर ही हो ऐसे ) ज्वर में बुखार अन्दर ही होता है इस लिये बाहर की चमड़ी बहुत गर्म नहीं होती है किन्तु साधारण होती है, इस अवस्था (दशा) में चमड़ी की परीक्षा में वैद्य लोग प्रायः धोखा खा जाते हैं, ऐसे अवसर पर नाड़ीपरीक्षा के द्वारा अथवा थर्मामेटर के द्वारा अन्तर (अन्दर) की गर्मी जानी जा सकती है, कभी २ ऐसा
१-'प्रत्यक्षे किंप्रमाणम्' इति न्यायात्॥
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