Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
२८- अपतन्त्रक- इस रोग में पैरों में तथा शिर में दर्द होता है, मोह होता है, गिर पड़ता है, शरीर धनुष कमान की तरह बांका हो जाता है, दृष्टि स्तब्ध होती है तथा कबूतर की तरह गले में शब्द होता है ।
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:- अंगभेद - इस रोग में सब शरीर टूटा करता है ।
३० - अंगशोप - इस रोग में वादी सब शरीर के खून को सुखा डालती है तथा शरीर को भी सुखा देती है ।
३१ - मिनमिनाना - इस रोग में मुँह से निकलनेवाला शब्द नाक से निकलता है, इसे गूंगापन कहते हैं ।
३२- कलता - इस रोग में हिचका २ कर तथा रुक २ कर थोड़ा २ बोला जाता है तथा बोलने में उबकाई खाता है ।
३३- अष्ठीला - इस रोग में नाभि के नीचे पत्थर के समान गांठ होती है । ३४ - प्रत्यष्ठीला - इस रोग में नाभि के ऊपर पेट में गांठ तिरछी होकर रहती है ।
३५ - वामनत्व - इस रोग में गर्भ में प्राप्त होकर जब वादी गर्भविकार को करती है तब बालक वामन होता है ।
३६ - कुब्जत्व - इस रोग में पीठ और छाती में वायु भर कर कूबड़ निकाल देती है ।
३७ - अंगपीड़ - इस रोग में सब शरीर में दर्द होता है ।
३८ - अंगशूल - इस रोग में सब शरीर में चसके चलते हैं ।
३९ - संकोच - इस रोग में वादी नसों को संकुचित कर शरीर को जकड़ देती है ।
४० - स्तम्भ
- इस रोग में वादी से सब शरीर ग्रस्त हो जाता है
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४१ - रूक्षपन - इस रोग में वादी के कोप से शरीर रूखा और निस्तेज हो जाता है ।
४२ - अंगभंग - इस रोग में ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वादी से शरीर टूट जायगा ।
४३ - अंगविभ्रम - इस रोग में शरीर का कोई भाग लकड़ी के समान जड़ हो जाता है ।
४४ - मूकत्व - इस रोग में बोलने की नाड़ी में वादी के भर जाने से जवान बन्द हो जाती है।
४५ - विट्ग्रह - इस रोग में आँतों में वायु भर कर दस्त और पेशाब को रोक देती है ।
४६ - बद्धविकता - इस रोग में वादी से दस्त बहुत करड़ा आता है ।
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