Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
३५-उष्णोच्छासत्व-इस रोग में श्वास गर्म निकलता है । ३६-उष्णमूत्रत्व-इस रोग में पेशाब गर्म आता है। ३७-उष्णमलत्व-इस रोग में दस्त गर्म उतरता है। ३८-तमोदर्शन-इस रोग में आंखों में अँधेरी आती है। ३९-पित्तमण्डलदर्शन-इस रोग में पीले मण्डल ( चक्कर) दीखते हैं। ४०-निःसरत्व-इस रोग में वमन और दस्त में पित्त निकलता है।
सूचना-पित्त के कोप से शरीर में उक्त रोगों में से एक अथवा अनेक रोगों के लक्षण दिखलाई देते हैं, उन को खूब समझ कर रोगों का इलाज करना चाहिये, क्योंकि बहुधा देखा गया है कि-मतिभ्रम, तिक्तास्यता, स्वेदस्राव, क्लम, अरति, अल्पनिद्रता, गात्रसाद, भिन्नविट्कता और तमोदर्शन आदि बहुत से पित्त के रोगों को साधारण मनुष्य अपनी समझ के अनुसार वायु के रोग गिनकर (मान कर) उन के मिटाने के लिये गर्म इलाज किया करते हैं, उस से उलटा रोग बढ़ता है, इसी प्रकार बहुत से रोग बाहर से वायु के से (वायुजन्य रोगों के समान ) दीखते हैं परन्तु असल में निश्चय करने पर वे (रोग) पित्त के (पित्तजन्य ) ठहरते हैं (सिद्ध होते हैं ), एवं बहुत से रोग बाहरी लक्षणों से पित्त तथा गर्मी को बता देते हैं परन्तु असल में निश्चय करने पर वे रोग वायु से उत्पन्न हुए सिद्ध होते हैं, इस लिये रोगों के कारणों के खोजने में बहुत विचारशक्ति और सूक्ष्म बुद्धि से जांच करने की आवश्यकता है।
कफ के कोप के कारण। गुड़, शक्कर, बूरा और मिश्री आदि मीठे पदार्थों के खाने से, घी और मक्खन आदि चिकने पदार्थों के खाने से, केला और भैंस का दूध आदि भारी पदार्थों के खाने से, ठंढे और भारी पदार्थों के अधिक खाने से, दिन में सोने से, अजीर्ण में भोजन करने से, विना मेहनत के खाली बैठे रहने से, शीतकाल में अधिक ठंढे पानी के पीने से और वसन्त ऋतु में नये अन्न के खाने से, इत्यादि आहार विहार से शरीर में कफ बढ़ कर बहुत से रोगों को उत्पन्न करता है, जिन में से मुख्य. तया कफ के २० रोग हैं, जिन के नाम ये हैं:
५-तन्द्रा-इस रोग में आंखों में मिँचाव सा लगा रहता है । २-अतिनिद्रता-इस रोग में नींद बहुत आती है। ३-गौरव-इस रोग में शरीर भारी रहता है। ४-मुखमाधुर्य-इस रोग में मुंह मीठा २ सा लगता है । ५-मुखलेप-इस रोग में मुँह में चिकनापन सा रहता है। ६-ग्रसेक-इस रोग में मुँह से लार गिरती रहती है। ७-श्वेतावलोकन-इस रोग में सब वस्तुयें सफेद दीखती हैं। ८-अतविदकत्व-इस रोग में दस्त सफेद रंग का उतरता है।
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