Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
जावे उसी समय मकान से निकलते ही उस को गर्म शकुन का होना शुभ होता है, सौम्य तथा ठंढा शकुन होवे तो वह अच्छा नहीं होता है इत्यादि, स्वरोदय के द्वारा रोग की परीक्षा इस प्रकार से होती है कि जब दूत वैद्य के पास पहुंचे तब वैद्य स्वरोदय देखे, वह भी भरीहुई दिशा में देखे, यदि दूत बैठ कर या खड़ा रह कर प्रश्न करे तो सजीव दिशा समझे, यदि उस समय वैद्य के अग्नितत्त्व चलता हो तो पित्त वा गर्मी का रोग समझे, रोगी के वायुतत्त्व चलता हो तो वायु का रोग समझे, इत्यादि तत्त्वों का विचार करे, यदि खाली दिशा में बैठ कर प्रश्न हो वा सुषुम्ना नाड़ी चलती हो तो रोगी मर जाता है, आकाशतरव में वैद्य को यश नहीं मिलता है, यदि वैद्य के चन्द्र स्वर चलता हो पीछे उस में पृथिवी और जलतत्त्व चले तथा उस समय रोगीके घर जावे तो वैद्य को अवश्य यश मिलेगा, दवा देते समय वैद्य के सूर्य स्वर का होना इसी तरह पुनः वैद्य को मकान से निकलते ही ठंढे और सौम्यशकुन का होना अच्छा होता है परन्तु गर्म शकुन का होना अच्छा नहीं है इत्यादि।
इस प्रकार से स्वप्न शकुन और स्वरोदय के द्वारा परीक्षा करने से वैद्य इस बात को निमित्त शास्त्र के द्वारा अच्छी तरह जान सकता है कि-रोगी जियेगा या बहुत दिनोंतक भुगतेगा अथवा आराम हो जायगा इत्यादि।
यद्यपि इन तीनों विषयों का कुछ यहांपर विशेष वर्णन करना आवश्यक था परन्तु ग्रंथ के बढ़ जाने के भय से यहां विशेष नहीं लिख सकते हैं किन्तु यहां पर तो अब रोग परीक्षा के जो लोकप्रसिद्ध मुख्य उपाय हैं उन का विस्तारसहित वर्णन करते हैं:
रोगपरीक्षा के लोकप्रसिद्ध मुख्य चार उपाय हैं--प्रकृतिपरीक्षा, स्पर्शपरीक्षा, दर्शनपरीक्षा और प्रश्नपरीक्षा, इन में से प्रकृतिपरीक्षा में यह देखा जाता है कि रोगी की प्रकृति वायुप्रधान है, वा पित्तप्रधान है, वा कफप्रधान है, अथवा रक्तप्रधान है, (इस विषय का वर्णन प्रकृति के स्वरूप के निर्णय में किया जावेगा), स्पर्शपरीक्षा में रोगी के शरीर के भिन्न २ भागों की हाथ के स्पर्श से तथा दूसरे साधनों से जांच की जाती है, इस परीक्षा का भी वर्णन आगे विस्तार से किया जावेगा, यह स्पर्शपरीक्षा हाथ से तथा थर्मामीटर ( उष्णतामापक नली) से और स्टेथोस्कोप (हृदय तथा श्वास नली की क्रिया के जानने की भुंगली) आदि दूसरे भी साधनों से हो सकती है, नाड़ी, हृदय, फेफसा तथा चमड़ी, ये सब स्पर्शपरीक्षा के अंग हैं, दर्शनपरीक्षा में यह वर्णन है कि-रोगी के शरीर को अथवा उस के जुदे २ अवयवों को केवल दृष्टि के द्वारा देखने मात्र से रोग
१-स्वरोदय का कुछ वर्णन आगे (पञ्चमाध्याय में ) किया जायगा, वहां इस विषय को देख लेना चाहिये ॥ २-अष्टाङ्ग निमित्त के यथार्थ ज्ञान को जो कोई पुरुष झूठा समझते हैं यह उन की मूर्खता है ।
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