Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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१ - धूमोद्वार - इस रोग में धुएँ के समान जली हुई डकार आती है । २ - विदाह- इस रोग में शरीर में बहुत जलन होती है । ३ - उष्णाङ्गत्व - इस रोग में शरीर हरदम गर्म रहता है ।
४ - मतिभ्रम - इस रोग में शिर ( मगज़ ) सदा घूमा करता है । ५ - कान्तिहानि - इस रोग में शरीर के तेज का नाश होता है । ६- कण्ठशोष - इस रोग में कण्ठ ( गला ) सूख जाता है । ७- मुखशोष - इस रोग में मुँह में शोष हो जाता है ।
८ - अल्पशुक्रता - इस रोग में धातु ( वीर्य ) कम हो जाता है I ९ - तितास्यता - इस रोग में मुँह कडुआ रहता है । १० - अम्लवक्रत्व — इस रोग में मुँह खट्टा रहता है । ११ - स्वेदस्राव - इस रोग में पसीना बहुत आता है ।
१२- अङ्गपाक -- इस रोग में शरीर पक जाता है ।
१३ - क्लम - इस रोग में ग्लानि तथा अशक्ति ( कमजोरी ) रहती है । 3- हरितवर्णत्व - इस रोग में शरीरका रंग हरा दीखता है ।
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- अतृप्ति - इस रोग में भोजन करने पर भी तृप्ति नहीं होती है । १६ - पीतकायता - इस रोग में शरीर का रंग पीला दीखता है ।
१७- रक्तस्राव - इस रोग में शरीर के किसी स्थान से खून गिरता है । १८ - अङ्गदरण — इस रोग में शरीर की चमड़ी फटती है।
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१९- लोहगन्धास्यता - इस रोग में मुँह में से लोह के समान गन्ध आती है । २० - दौर्गन्ध्य — इस रोग में मुँह तथा शरीर से दुर्गन्ध निकलती है ।
२१ - पीतमूत्रत्व - इस रोग में पेशाब पीला उतरता है । २२- अरति- इस रोग में पदार्थों पर अप्रीति रहती है । २३- पित्तविकता - इस रोग में दस्त पीला आता है ।
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४- पीतावलोकन - इस रोग में आँखों से पीला दीखता है । २५- पीतनेत्रता - इस रोग में आंखें पीली हो जाती हैं । २६ - पीतदन्तता - इस रोग में दाँत पीले हो जाते हैं।
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७- शीतेच्छा - इस रोग में ठंढे पदार्थ की बांछा रहती है ।
२८ - पीतनखता - इस रोग में नख पीले हो जाते हैं ।
२९- तेजोद्वेष- इस रोग में सूर्य आदि का तेज सहा नहीं जाता है ।
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० - अल्पनिद्रता - इस रोग में नींद थोड़ी आती है । ३१ - कोप - इस रोग में क्रोध ( गुस्सा ) बढ़ जाता है । ३२- गात्रसाद - इस रोग में शरीर में पीड़ा होती है । ३३- भिन्नविट्कत्व - इस रोग में दस्त पतला आता है । ३४ - अन्धता -- इस रोग में आंख से नहीं दीखता है । ३३ जै० सं०
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