Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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तमाखू के सूंघने से-मलिनता होती है, कपड़े खराब होते हैं तथा अनेक प्रकार के रोग भी उत्पन्न होते हैं।
चाय और काफी के व्यसन से भी नशे के पीने के समान हानि होती है, क्योंकि इस में भी थोड़ा २ नशा होता है, यह अधिक गर्म और रूक्ष होने के कारण रूखी और कम खुराक खानेवाले गरीब लोगों को बहुत हानि पहुँचाती है तथा इस के सेवन से मगज और उस के ज्ञानतन्तु निर्बल हो जाते हैं।
१०-विषयोग-पहिले लिख चुके हैं कि यदि अभक्ष्य वस्तु खाने पीने में अ जावे अथवा परस्पर (एक से दूसरा) विरुद्ध पदार्थ खाने में आ जावे तो वह शरीर में विष के समान हानि करता है, इस के सिवाय जो अनेक प्रकार के विव हैं वे भी पेट में जाकर हानि करते हैं, एक प्रकार की विषैली (विषभरी) हवा भी होती है जिस से बुखार, पाण्डु और मरोड़ा आदि रोग होते हैं। __ शीसे और तांबे के पेट में जाने से चूक हो जाती है, वत्सनाग (सिंगिया) के पेट में जाने से मूर्छा तथा दाह होता है और सोमल तथा रसकपूर के पेट में जाने से दस्त के बन्धन खुल जाते हैं, तात्पर्य यह है कि सब ही प्रकार के विप पेट में जाकर हानि ही करते हैं ।
१९-रसविकार-दस्त, पेशाब, पसीना, थूक और पित्त आदि पदार्थ रुधिर से उत्पन्न होते हैं तथा इन सबों को शरीर का रस कहते हैं, यह रस जब आवश्यकता से न्यून वा अधिक होकर शरीर में रहता है तब हानि करता है, जैसे-यदि पसीन न निकले तो भी हानि करता है और यदि आवश्यकता से अधिक निकले तो भी हानि करता है, इसी तरह दस्त आदि के विषय में भी समझ लेना चाहिये, यदि पेशाब कम हो तो पेशाब के रास्ते से जो हानिकारक अंश बाहर निकलना चाहिये वह निकल नहीं सकता है तथा खून में जमा हो जाता है और अनेक हानियों को करता है, यदि पेशाब का होना बिलकुल ही बन्द हो जावे तो प्राणी शीघ्र ही मर जाता है, देखो ! हैजा और मरी रोग में प्रायः पेशाब रुक कर ही मृत्यु होती है, बहुत पसीना, बहुत दिनों का अतीसार, मस्सा, नाक से गिरता हुआ खून तथा स्त्रियों का प्रदर इत्यादि वहते हुए प्रवाह को एकदम बन्द कर देने से हानि होती है, पित्त के बढ़ने से पित्त के रोग होते हैं और खट्टे रस के सञ्चय से सांधों में दर्द हो जाता है।
१-जीव-जीव अर्थात् कृमि वा जन्तु से कण्ठमाल, वात, रक्त, वमन, मृगी, अतीसार तथा चमड़ी के अनेक रोग उत्पन्न होते हैं।
१३-चेप-चेपीहवा से अथवा दूसरे मनुष्य के स्पर्श से बहुत सी बीमारियां होती हैं, जैसे-उपदंश (गर्मी का रोग), वातरक्त, गलितकुष्ठ, प्रमेह, सुजाख,
१-स का भी लोगों को व्यसन ही पड़ जाता है ।
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