Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय।
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वत्र पहरने में यह भी देखा जाता है कि लोग देश काल और प्रकृति आदि का कुछ भी विचार न करके एक दूसरे की देखादेखी वस्त्र पहरने लगते हैं, जैसे देखो ! आजकल इस देश में काला कपड़ा बहुत पहिना जाता है परन्तु इस का पहन सा देश और काल दोनों के विपरीत है, देखिये ! यह देश उप्ण है और काली वस्तु में गर्मी अधिक घुस जाती है तथा वह बहुत देरतक बनी रहती है, इसपर भी यह खूबी कि ग्रीष्म ऋतु में भी काले वस्त्र को पहनते हैं, उन का ऐसा करना मानो दुःखों को आप ही बुलाना है, क्योंकि सर्वदा काले वस्त्र का पहरना इस उष्णता प्रधान देश के वासियों को अयोग्य और हानिकारक है, इस के पहरने से उन के रस रक्त और वीर्य में गर्मी अधिक पहुँचती है, जिस से स्वच्छ और अनुकूल भोजन के खाने पर भी धातु की क्षीणता और रक्तविकार आदि रोग उन्हें घेरे रहते हैं, देखो ! इस समय इस देश में बहुत ही कम पुरुष ऐसे नेकलेंगे कि जिन को धातुसम्बन्धी किसी प्रकार की बीमारी नहीं है नहीं तो जिधर जाइये उधर यही रोग फैला हुआ दीख पड़ता है, अतः सब मनुष्यों को अपने प्राचीन पुरुषोंके सदृश वैद्यक शास्त्र के कथनानुसार तथा ऋतु और देश के अनुकूल श्वेताम्बर (सफेद वस्त्र) पीताम्बर (पीले वस्त्र) और रक्ताम्बर (लाल वस्त्र) आदि भांति २ के वस्त्र पहरने चाहियें। ___ इर के सिवाय यह भी स्मरण रखना चाहिये कि-वस्त्र को मैला नहीं रखना चाहिर, बहुधा देखा जाता है कि-लोग बहुमूल्य वस्त्रों को तो पहनते हैं परन्तु उन की स्वच्छता पर ध्यान नहीं देते हैं, इस कारण उन को शरीर की स्वच्छता से भी कुछ लाभ नहीं होता है, अतः उचित यही है कि अपनी शक्ति के अनुसार पहना हुआ कपड़ा चाहे अधिक मूल्य का हो चाहे कम मूल्य का हो उस को आठवें दिन उतार कर दूसरा स्वच्छ वस्त्र पहना जावे कि जिससे स्वच्छताजन्य लाभ प्राप्त हो, क्योंकि मलिन कपड़े से दुर्गन्ध निकलता है जिस से आरोग्यता में हानि होती है, दूसरे पुरुष भी ऐसे पुरुषों से घृणा करते हैं तथा उन की सर्व सजनों में निन्दा होती है।
निर्मल वस्त्रों के धारण करने से कान्ति यश और आयु की वृद्धि होती है, अलक्ष्मी का नाश होता है, चित्त में हर्ष रहता है, तथा मनुष्य श्रीमानों की सभा में जाने के योग्य होता है। __ तंग वस्त्र भी नहीं पहरना चाहिये, क्योंकि तंग वस्त्र के पहरने से छाती तथा कलेजे (लीवर) पर दबाव पड़ने से ये अवयव अपने काम को ठीक रीति से नहीं करते हैं, इस से रुधिर की गति बन्द हो जाती है और रुधिर की गति के बन्द होनेसे श्वास की नली का तथा कलेजे का रोग उत्पन्न होता है।
इस के अतिरिक्त अति सुर्ख और भीगे हुए कपड़ों को भी नहीं पहरना चाहिये, क्यों कि इस प्रकार के वस्त्र के पहरने से कई प्रकार की हानि होती है।
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