Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
है, किन्तु वैकारिक अर्थात् विकार को उत्पन्न करनेवाली है, देखो ! दिन में सोने वालों में से मनुष्यों का अधिक भाग इस बात को स्वीकार करेगा कि दिन में सोने से उन्हें बहुत से विकृत स्वप्न आते हैं, कहिये इस से क्या सिद्ध होता है ? इसलिये बुद्धिमानों को सदा दिन में सोने के व्यसन को अपने पीछे नहीं लगाना चाहिये ।
यह भी स्मरण रखना चाहिये कि जिस प्रकार दिन में सोने से हानि होती है। उसी प्रकार रात्रि में जागना भी हानिकर होता है, परन्तु उपवास के अन्त में रात्रि का जागना हानि नहीं करता है, किन्तु नियमित आहार कर के जागना हानि करनेवाला है, रात्रि में जागने से सब से प्रथम अजीर्ण रोग उत्पन्न होता है, भला सोचने की बात है कि साधारण और अनुकूल आहार ही जब रात्रि में जागने से नहीं पचता है तो अनुकूलतापर ध्यान देने के बदले केवल स्वाद ही पर चलनेवाले और मात्रा के अनुसार खाने के बदले खूब डाट कर हंसनेवाले मनुष्य यदि रात्रि में जागने से अजीर्ण रोग में फँस जांय तो इस में आश्चर्य ही क्या है ?
जो लोग दिन में सोकर रात्रि को बारह बजेतक जागते रहते हैं तथा जो दिन में तो इधर उधर फिरते हैं और रात्रि में काम करके बारह बजेतक जागते हैं, वे जानबूझ कर अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारते हैं, और अपनी आयु को घटाते हैं, किन्तु जो रात्रि में सुख से सोनेवाले हैं वे ही दीर्घजीवी गिने जा सकते हैं, देखो ! पहिले यहां के लोगों में ऐसी अच्छी प्रथा प्रचलित थी कि प्रातःकाल उठकर अपने स्नेहियों से कुशल प्रश्न पूछते समय यही प्रश्न किया जाता था कि रात्रि सुखनिद्रा में व्यतीत हुई? इस शिष्टाचार से क्या सिद्ध होता है यही कि लोग रात्रि में सुख से निद्रा लेते हैं वे ही दीर्घजीवी होते हैं ।
निद्रा को रोकने से शिर में दर्द हो जाता है, जमुहाइयां आने लगती हैं, गरीर टूटने लगता है, काम में अरुचि होती है और आंखें भारी हो जाती हैं ।
देखो ! निद्रा का योग्य समय रात्रि है, इसलिये जो पुरुष रात्रि में निद्रा नहीं लेता है वह मानो अपने जीवन के एक मुख्य पाये को निर्बल करता है, इस में कुछ भी सन्देह नहीं है ।
६ - वस्त्र - देश और काल के अनुसार वस्त्रों का क्योंकि वह भी शरीररक्षा का एक उत्तम साधन है,
पहनना उचित होता है, परन्तु बड़े ही शोक का विषय है कि- वर्तमान समय में बहुत ही कम लोग इन बातों पर ध्यान देते हैं अर्थात् सर्वसाधारण लोग इन बातों पर जरा भी ध्यान नहीं देते हैं और न वस्त्रों के पहरने के हानिलाभों को सोचते हैं किन्तु जो जिस के मन में आता है वह उसी को पहनता है ।
१ - नाटक के देखने के शौकीन लोगों को भी आयु को ही घटानेवाले जानो ॥
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