Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
कसरत दो प्रकार की होती है- एक शारीरिक ( शरीर की) और दुसरी मानसिक ( मन की ), इन दोनों कसरतोंको पूर्व लिखे अनुसार अपनी शक्तिके अनुसार ही करना चाहिये, क्योंकि हद्द से अधिक शारीरिक कसरत तथा परिश्रम करने से हृदय में व्याकुलता ( धड़धड़ाहट ) होती है, नसों में रुधिर बहुत शीघ्र फिरता है, श्वानोच्छ्वास बहुत ज़ोरसे चलता है जिससे मगज़ तथा फेफसे आदि आवश्यक भागों पर अधिक दबाव होने से तत्सम्बन्धी रोग होता है, भँवर आते हैं, कानों में आगज़ होती है, आँखों में अँधेरा छा जाता है, भूख मारी जाती है, अजीर्ण होता है, नींद नहीं आती है तथा बेचैनी होती है तथा शक्ति से बढ़कर मानसिक कसरत करने से मनुष्य के मगज़में जुस्सा भर जाता है जिस से वेहोसी हो जाती है तथा कभी २ मृत्यु भी हो जाती है, मानसिक विपरीत परिश्रम करनेसे अर्थात् चिन्ता फिक्र आदि से अंग सन्तप्त हो जाते हैं, शरीर में निर्बलता अपना घर कर लेती है, इसी प्रकार शक्ति से बाहर पड़ने लिखने तथा बांधने से, बहुत विचार करने से और मन पर बहुत दबाव डालने से कामला, अजीर्ण, वादी और पागलपन आदि रोग उत्पन्न होते हैं ।
स्त्रियों को योग्य कसरत के न मिलने से उनका शरीर फीका, नाताकत और रोगी रहता है, गरीब लोगों की स्त्रियोंकी अपेक्षा व्यपात्र तथा ऐश आरान में संलग्न लोगों की स्त्रियां प्रायः सुख में अपने जीवन को व्यतीत करती हैं तथा ना परिश्रम किये दिनभर आलस्य में पड़ी रहती हैं, इस से बहुत हानि होती है, क्योंकि जो स्त्रियां सदा बैठी रहा करती हैं उन के हाथ पांव ठंड़े, चेहरा फीका, शरीर तपाया हुआ सा तथा दुर्बल, वादी से फूला हुआ मेद, नाड़ी निर्बल, पेट का फूलना, बदहज़मी, छाती में जलन, खट्टी डकार, हाथ पैरों में कांपनी, चसका और हिटीरिया आदि अनेक प्रकार के दुःखदायी रोग तथा ऋतुधर्मसम्बन्धी भी कई प्रकार के रोग होते हैं, परन्तु ये सब रोग उन्हीं स्त्रियों को होते हैं जो कि शरीर की पूरी २ कसरत नहीं करती हैं और भाग्यमानी के घमण्ड में आकर दिन रात पड़ी रहती हैं।
५- नींद - आवश्यकता से अधिक देर तक नींद के लेने से रुधिर की गति ठीक रीति से नहीं होती है, इस से शरीर में चर्बीका भाग जम जाता है, पेट की दूद ( तोंद ) बाहर निकलती है, ( इसे मेदवायु कहते हैं ), कफ का जोर होता है, जिससे कफ के कईएक रोगों के होने की सम्भावना हो जाती है तथा जावश्यकता से थोड़ी देरतक ( कम ) नींद के लेने से शूल, ऊरुस्तम्भ और अलस्य आदि रोग हो जाते हैं ।
बहुत से मनुष्य दिन में निद्रा लिया करते हैं तथा दिन में सोने को ऐश आराम समझते हैं परन्तु इस से परिणाम में हानि होती है, जैसे- क्रोध, नान, माया और लोभ आदि आत्मशत्रुओं ( आत्मा के वैरियों ) को थोड़ा सा भी
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