Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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अवकाश देने से वे अन्तःकरण पर अपना अधिकार अधिक २ जमाने लगते हैं और अन्त में उसे वश में कर लेते हैं उसी प्रकार दिन में सोने की आदत को भी थोड़ा सा अवकाश देने से वह भी भांग और अफीम आदि के व्यसन के समान चिपट जाती है, जिस का परिणाम यह होता है कि यदि किसी दिन कार्यक्श दिन में सोना न बन सके तो शिर भारी हो जाता है, पैर टूटने लगते हैं और जमुहाइयां आने लगती हैं, इसी तरह यदि कभी विवश होकर काम में लग जाना पड़ता है तो अन्तःकरण सोलह आने के बदले आठ आने मात्र काम (आधा काम ) करने योग्य हो जाता है, यद्यपि अत्यन्त निर्बल और रोगग्रस्त मनुष्य के लिये वैद्यकशास्त्र दिन में सोने की भी आज्ञा देता है परन्तु स्वस्थ ( नीरोग ) मनुष्य के लिये तो वह ( वैद्यकशास्त्र ) ऐसा करने ( दिन में सोने ) का सदा विरोधी है ।
गर्मी की ऋतु में जब अधिक गर्मी पड़ती है तब शरीर का जलमय तत्व और बाहरी गर्मी शरीर के भीतरी भागों पर अपना प्रभाव दिखलाने लगती है उस समय दिन में भी थोड़ी देरतक सोना बुरा नहीं है परन्तु तब भी नियम से ही सोना चाहिये, बहुत से लोग उस समय में ग्यारह बजे से लेकर सायंकाल के पांच बजे तक सोते रहते हैं, सो यह वे अनुचित आचरण ही करते हैं, क्योंकि उस समय में भी दिन का अधिक सोना हानि ही करता है।
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इस के सिवाय दिन में सोने से एक हानि और भी है और वह यह है किरात्रि में अवश्य ही सोकर विश्राम लेने की आवश्यकता है परन्तु वह दिनका सोना रात्रि की निद्रा में बाधा डालता है जिस से हानि होती है ।
बहुत से मनुष्य भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि दिन में सोकर उठने के बाद उन का शरीर मिट्टीसा और कुछ ज्वर आजाने के समान निर्माल्य ( कुललाया हुआ सा ) हो जाता है ।
दिन में अच्छी तरह सोकर उठनेवाले मनुष्य के मुख की मुद्रा को देखकर लोग उस से प्रश्न करते हैं कि क्या आज आप की तबीयत अच्छी नहीं है ? परन्तु उत्तर यही मिलता है कि नहीं, तबीयत तो अच्छी है परन्तु सोकर उठा हूँ, इस से आंखें लाल दिखलाई देती होंगी, अब कहिये कि दिन का सोना सुखकर हुआ कि हानिकर ?
दिन में सोने से शरीर के सब धातु खास कर विकृत और विषम बन जाते हैं। तथा शरीर के दूसरे भी कई भीतरी भागों में विकार उत्पन्न होता है ।
मिलता है इसलिये हम दिन
कुछ मनुष्यों का यह कथन है कि हम को सुख में सोते हैं, परन्तु उन की यह दलील चलने योग्य नहीं है, क्योंकि मुख्य बात तो यह है कि उन के ऊपर आलस्य सवार होता है और उन्हें लेटते ही निद्रा आ जाती है, परन्तु स्मरण रखना चाहिये कि दिन की निद्रा स्वाभाविक निद्रा नहीं
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