Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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से शारीरिक धर्म की हानि होती है, जिस का परिणाम ब्रह्मचर्य का भंग अर्थात् व्यभिचार है ।
३- कालविचार - वैद्यकशास्त्र की आज्ञा है कि- "ऋतौ भार्यामुपेयात्" अथत् ऋतुकाल में भार्या के पास जाना चाहिये, क्योंकि स्त्री के गर्भ रहने का काल यही है, ऋतुकाल के दिवसों में से दोनों को जो दिन अनुकूल हो ऐसा एक दिन पसन्द करके स्त्री के पास जाना चाहिये, किन्तु ऋतुकाल के विना वारंवार नहीं जाना चाहिये, क्योंकि ऋतुकाल के बीत जाने पर अर्थात् ऋतुस्राव से १६ दिन बीतने के बाद जैसे दिन के अस्त होने से कमल संकुचित होकर बंद हो जाते हैं उसी प्रकार स्त्री का गर्भाशय संकुचित होकर उस का मुख बंद हो जाता है, इस लिये ऋतुकाल के पीछे गर्भाधान के हेतु से संयोग करना अत्यन्त निरर्थक है, क्योंकि उस समय में गर्भाधान हो ही नहीं सकता है किन्तु अमूल्य वीर्य ही निष्फल जाता है जो कि ( वीर्य ही ) शरीर में अद्भुत शक्ति है, प्रायः यह अनुमान किया गया है कि एक समय के वीर्यपात में २॥ तोले वीर्य के बाहर गिरने का सम्भव होता है, यद्यपि क्षीणवीर्य और विषयी पुरुषों में वीर्य की कमी होने से उन के शरीर में से इतने वीर्य के गिरने का सम्भव नहीं होता है तथापि जो पुरुष वीर्य का यथोचित रक्षण करते हैं और नियमित रीति से ही वीर्य का उपयोग करते हैं उन के शरीर में से एक समय के समागम में २॥ तोले वीर्य बाहर गिरता है, अब यह विचारणीय है कि यह २॥ तोले वीर्य कितनी खुराक में से और कितने दिनों में बनता होगा, इस का भी विद्वानों ने हिसाब निकाला है और वह यह है कि ८० रतल खुराक में से २ रतल रुधिर बनता है और २ रतल रुधिर में से २॥ तोला वीर्य बनता है, इस से स्पष्ट है कि दो ? मन खुराक जितने समय में खाई जावे उतने समय में २ ॥ रुपये भर नया वीर्य बनता है, इस सर्व परिगणन का सार ( मतलब ) यही है कि दो मन खाई हुई खुराक का सत्व एक समय के स्त्री समागम में निकल जाता है, अब देखो ! यदि तनदुरुस्त मनुष्य प्रतिदिन सामान्यतया १॥ या २ रतल की खुराक खावे तो ४० दिन में कि - यदि ४०
८० र तल खुराक खा सकता है, इस हिसाब से यह सिद्ध होता है दिवस में एक वार वीर्य का व्यय हो तबतक तो हिसाब बराबर रह सकता है परन्तु यदि उक्त समय ( ४० दिवस ) से पूर्व अर्थात् थोड़े २ समय में वीर्य का खर्च हो तो अन्त में शरीर का क्षय अर्थात् हानि होने में कोई सन्देह ही नहीं है, परन्तु बड़े ही शोक का स्थान है कि जिस तरह लोग द्रव्यसम्बन्धी हिसाब रखते है तथा अत्यन्त कृपणता ( कक्षूसी) करते हैं और द्रव्य का संग्रह करते हैं उस प्रकार शरीर में स्थित वीर्यरूप सर्वोत्तम द्रव्य का कोई ही लोग हिसाब रखते हैं, देखो !
१- जिस दिन रजस्वला स्त्री को ऋतुस्राव हो उस दिन से लेकर १६ रात्रितक समय को ऋतु अथवा ऋतुकाल कहते हैं, यह पहिले ही लिख चुके हैं |
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