Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
चतुर्थ अध्याय ।
३७१
४-शारीरिक स्थिति-जिस समय में स्त्री वा पुरुष के शरीर में कोई व्याधि (रोग), त्रुटि (कसर) अथवा बेचैनी हो उस में विहार का त्याग कर देना चाहिये अर्थात् स्त्री की रोगावस्था आदि में पुरुष को और पुरुष की रोगावस्था
आदि में स्त्री को अपने मन को वश में रखकर ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये, किन्नु ऐसे समय में तो विहारसम्बन्धी विचार भी मन में नहीं लाना चाहिये, क्योंकि रोगावस्था आदि में विहार करने से अवश्य शरीर में विकार उत्पन्न हो जाता है तथा यदि कदाचित् ऐसे समय में गर्भस्थिति हो जाये तो स्त्री और गर्भ दोनों का जीव जोखम में पड़ जाता है।
बहुत से रोगों में प्रायः विहार (विषयभोग) की इच्छा कम होने के बदले अधिक हो जाती है, जैसे-क्षयरोगी को वारंवार विहार की इच्छा हुआ करती है, यह इन्छा स्वाभाविक नहीं है किंतु यह ( उक्त) रोग ही इस इच्छा को जन्म देता है इस लिये क्षयरोगी को सावधानी रखनी चाहिये।
विहार के विषय में परस्पर की शारीरिक शक्ति का भी विचार करना चाहिये, क्योंकि यह बहुत ही आवश्यक बात है, स्त्री पुरुष को इस विषय में लम्पट बन कर केवल स्वार्थी नहीं होना चाहिये, तात्पर्य यह है कि पुरुष को स्त्री की शक्ति का और स्त्री को पुरुष की शक्ति का विचार करना चाहिये, यदि स्त्री पुरुष के जोड़े में एक तो विशेप बलवान् हो और दूसरा विशेष निर्बल हो तो यह अलबत्त खराबी का तूल है, परन्तु यदि भाग्ययोग से ऐसा ही जोड़ा बंध जावे तो पीछे परस्पर के हित का विचार क्यों नहीं करना चाहिये अर्थात् अवश्य करना चाहिये।
बहुत से विचाररहित मूर्ख पुरुष विहार के विषय में स्त्रीजातिपर अपने हक़ का दावा करते हैं और ऐसे विचार के द्वारा दावे का अनुचित उपयोग कर के स्त्री को लाचार कर परवश करते हैं, सो यह अत्यन्त अनुचित है, क्योंकि देखो ! स्त्री पुरुष का परस्पर व्यापार एक शारीरिक धर्म है और धर्म में एकतरफी हक़ का सवाल नहीं रहता है किन्तु दोनों बराबर हकदार हैं और परस्पर के सुख के लिये दोनों दम्पती धर्म में बंधे हुए हैं इस लिये स्त्री और पुरुष को परस्पर की शक्ति तथा अनुकूलता का अवश्य विचार करना चाहिये।
५-मानसिक स्थिति-दोनों में से यदि किसी का मन चिन्ता, श्रम, शोक, क्रोध और भय से व्याकुल हो रहा हो तो ऐसे प्रतिकूल समय में विहारसम्बन्धी कोई भी चेष्टा नहीं करनी चाहिये, परन्तु अत्यन्त खेद का विषय है कि-वर्तमान समय में स्त्री पुरुष इस विषय का बहुत ही कम विचार करते हैं।
इच्छा के विना बलात्कार से किया हुआ कर्म सन्तोपदायक नहीं होता है और असंतोष शारीरिक तथा मानसिक विकार का कारण होता है, इस लिये इच्छा के विना जो विहार किया जाता है वह निष्फल होता है और उलटा शरीर को विगाइता है, इस लिये इस बात को दोनों पक्षों में ध्यान में रखना चाहिये, यह भी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com