Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
सकती हैं और उन को उक्त दशा में विधवापन की तकलीफ विशेष नहीं हो सकती है, बस इस हिसाब से सौ विवाहिता स्त्रियों में से केवल दो विधवायें ऐसी दीख पड़ेगी कि जो सन्तानहीन तथा निराश्रयवत् होंगी अर्थात् जिन का कुछ अन्य प्रबन्ध करने की आवश्यकता रहेगी।
इस लिये सब उच्च वर्ण (ऊंची जाति) वालों की उचित है कि स्वयंवर की नि से विवाह करने की प्रथा को अवश्य प्रचलित करें, यदि इस समय किसी कारण से उक्त रीति का प्रचार न हो सके तो आप खुद गुण कर्म और स्वभाव को मिलाकर उसी प्रकार कार्य को कीजिये कि जिस प्रकार आप के प्राचीन पुरुष करते थे।
देखिये ! विवाह होने से मनुष्य गृहस्थ हो जाते हैं और उन को प्रायः गृहस्थोपयोगी सब ही प्रकार के पदार्थों की आवश्यकता होती है तथा वे सब पदार्थ धन ही से प्राप्त होते हैं और धन की प्राप्ति विद्या आदि उत्तम गुणों से ही होनी है नथा विद्या आदि उत्तम गुणों के प्राप्त करने का समय केवल बाल्यावस्था की है, सतः यदि बाल्यावस्था में विवाह कर सन्तान को बन्धन में डाल दिया जाये तो कहिये विद्या आदि उत्तम गुणों की प्राप्ति कब और कैसे हो सकती है? तथा वेद्या जादि उत्तम गुणों के अभाव में धन की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? और इस के विना आवश्यक गृहस्थोपयोगी पदार्थों की अनुपलब्धि (अप्राप्ति ) से गृहस्थाश्रम में पूर्ण सुख कैसे प्राप्त हो सकता है ? सत्य तो यह है कि-बाल्यावस्था में प्रवाह का कर देना मानो सब आश्रमों को और उन के सुखों को नष्ट कर देना है, इसी कारण से तो प्राचीन काल में विद्याध्ययन के पश्चात् विवाह होता था, शारू कारों
१-माता पिता को उचित है कि जब अपने पुत्र और पुत्री युवावस्था को प्राप्त हो जावे तब उन के योग्य कन्या और वर के ब्रह्मचर्य की, विद्या आदि सद्गुणों की तथा उन के धांचरण की अच्छे प्रकार से परीक्षा करके ही उन का विवाह करें, इस की विधि शास्त्रकार ने इम प्रकार कही है कि-१-लड़के की अवधा २५ वर्ष की तथा लड़की की अवस्था सोलह पं की होनी चाहिये। २-उँचाई में लड़की लड़के के कन्धे के बराबर होनी चाहिये, अथवा हम से भी कुछ कम होनी चाहिये अर्थात् लड़के से लड़की उँची नहीं होनी चाहिये। ३- निों के दशगर सम होने चाहिये । ४-दोनों या तो विद्वान् होने चाहिये अथवा दोनों ही मृः होने चाहिये । पुत्रीके गुण-१-जिस के शरीर में कोई रोग न हो। २-जिस के शरीर में दुर्गन्ध न आती हो । ३-जिस के शरीरपर बड़े २ बाल न हो तथा मूंछ के बाल भी न हों। ४-जो बहुत बकवाद करनेवाली न हो। ५-जिस का शरीर टेढ़ा न हो तथा अंगहीन भी न ह । ६जिस का शार कोमल हो परन्तु दृढ़ हो । ७-जिस की वाणी मधुर हो । ८-जिस का वा पीला न हो। ९-जो भूरे नेत्रवाली न हो। १०-जिस का नाम शास्त्रानुसार हो, जैसे- शोटा, सभद्रा, सावित्री आदि । ११-जिस की चाल हम वा हथिनी के तुल्य हो। १२-जो अपने चार गोत्रों में की न हो । १३-मनुस्मृति आदि धर्म शास्त्रों में कन्या के नामके विषय में कहा है कि"नक्षवृक्षनदीनाम्नी, नान्त्यपर्वतनामिकाम् ॥ न पक्ष्यहिप्रेष्यनान्नी, न च भीषणनामिकाम् । १॥" अर्थात् कन्या नक्षत्र नामवाली न हो, जैसे-रोहिणी, रेवती इत्यादि; वृक्ष नामवाली न हो, जैसेचम्पा, तुलसी आदि; नदी नामवाली न हो, जैसे-गंगा, यमुना, सरस्वती आदि; अन्त्य । नीच) नामवाली न हो, जैसे-चारखाली आदि; र्वत नामवाली न हो, जैसे-विन्ध्याचल, हिमा.
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