Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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बाल्यावस्था के विवाह से हानि का प्रत्यक्ष प्रमाण और दृष्टान्त यही है किदेवो ! जब किसी खेत में गेहूँ आदि अन्न को बोते हैं तो जमने के पीछे दश पांच दिन में बहुत से मर जाते हैं, एक महिने के पीछे बहुत कम मरते हैं, दो चार महीने के पीछे अत्यन्त ही कम मरते हैं, इस के पश्चात् बचे हुए चिरस्थायी हो जाते हैं, इसी प्रकार जन्म से पांच वर्षतक जितने बालक मरते हैं उत्ने पांच से दश वर्षतक नहीं मरते हैं, दश से पन्द्रह वर्षतक उस से भी बहुत कम मरते हैं, इस का हेतु यही है कि बाल्यावस्था में दाँतों का निकलना तथा शीतला आदि अनेक रोग प्रकट होकर बालकों के प्राणघातक होते हैं।
समझने की बात है कि-जब किसी पेड़ की जड़ मज़बूत हो जाती है तो वह बडो २ ऑधियों से भी बच जाता है किन्तु निर्बल जड़वाले वृक्षों को आंधी आदि तुपान समूल उखाड़ डालते हैं, इसी प्रकार बाल्यावस्था में नाना भांति के रोग उत्पन्न होकर मृत्युकारक हो जाते हैं परन्तु अधिक अवस्था में नहीं होते हैं, यदि होत भी हैं तो सौ में पांच को ही होते हैं। ___ अब इस ऊपर के वर्णन से प्रत्यक्ष प्रकट है कि-यदि बाल्यावस्था का विवाह भारत से उठा दिया जाये तो प्रायः बालविधवाओं का यूथ (समूह) अवश्य कम हो सकता है तथा ये सब ( ऊपर कहे हुए) उपद्रव मिट सकते हैं, यद्यपि वर्तमान में इस निकृष्ट प्रथा के रोकने में कुछ दिक्कत अवश्य होगी परन्तु बुद्धिमान् जन यदि इस के हटाने के लिये पूर्ण प्रयत्र करें तो यह धीरे २ अवश्य हट सकती है अर्थात् धीरे २ इस निकृष्ट प्रथाका अवश्य नाश हो सकता है और जब इस निकृष्ट प्रथा का बिलकुल नाश हो जावेगा अर्थात् बाल्यविवाह की प्रथा बिलकुल उठ जावे गी तब निस्सन्देह ऊपर लिखे सब ही उपद्रव शान्त हो जावेंगे और महादुःख का एक मात्र हेतु विधवाओं की संख्या भी अति न्यून हो जावेगी अर्थात् नाममात्र को रह जावेगी (ऐसी दशा में विधवाविवाह वा नियोग विषयव चर्चा के प्रश्नके भी उटने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी कि जिस का नाम सुन्कर साधारण जन चकित से रह जाते हैं) क्योंकि देखो ! यह निश्चयपूर्वक मारा जा सकता है कि-यदि शास्त्रानुसार १६ वर्ष की कन्या के साथ २५ वर्ष के पुरुष का विवाह होने लगे तो सौ स्त्रियों में से शायद पाँच स्त्रियाँ ही मुश्किल से विधवा हो सकती हैं (इस का हेतु विस्तारपूर्वक ऊपर लिख ही चुके हैं कि बाल्यावस्था में रोगों से विशेष मृत्यु होती है किन्तु अधिकावस्था में नहीं इत्यादि) और उन पाँच विधवाओं में से भी तीन विधवायें योग्य समय में विवाह होने के कारण अवश्य सन्तानवती माननी पड़ेगी अर्थात् विवाह होने के बाद दो तीन वर्ष में उन के वालबच्चे हो जावेंगे पीछे वे विधवा होगी ऐसी दशा में उन के लिये वैधव्ययातना अति कष्टदायिनी नहीं हो सकती है, क्योंकि-सन्तान के होने के बाद यदि कुछ समय के पीछे पतिका मरण भी हो जावे तो वे स्त्रियाँ उन बच्चों की भावी आशापर उन के लालन पालन में अपनी आयु को सहज में व्यतीत कर
३० जै० सं०
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