Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
मिले उन्हीं को परस्पर विवाह करना चाहिये, (देखो ! श्रीपाल राजा का प्राकृत चरित्र, उस में इस का बर्णन आया है शास्त्रकार यह भी पुकार २ कर कहते हैं कि अति उत्तम विवाह वही है कि जिस में तुल्यरूप और स्वभाव आदि गुणों से युक्त कन्या और वर का परस्पर सम्बन्ध हो तथा कन्या से वर का बल और आयु दूना वा ड्योढ़ा तो अवश्य हो, परन्तु अफसोस का विषय तो यह है कि शास्त्र को आज कल न कोई देखता और न कोई सुनता ही है, फिर इस दशामें शात्रों और शास्त्रकारों की सम्मति प्रत्येक विषय में कैसे मालूम हो सकती है ? बस यही कारण है कि विवाहविषय में शास्त्रीय सिद्धान्त ज्ञात न होने से अनेक प्रकार की कुरीतियां प्रचलित हो गई और होती जाती हैं, जिन का वर्णन करते हुए अतिखेद होता है, देखिये विवाह के विषय में एक यह और भी बड़ी भारी कुरीति प्रचलित है कि बहुधा उत्तम २ जातियों में विवाह ठेके पर होता है अर्थात् सगई करने से पूर्व इकरार (करार ) हो जाता है कि हम इतनी बड़ी बरात लावेंगे और इतने रुपये आप को खर्च करने पड़ेगा, यह तो बड़े २ श्रीमन्तों का हाल देखने में आता है, अब बाकी रह गये हजारिये और गरीब गृहस्थ लोग, सो इन में भी बहुत से लोग रुपया लेकर कन्या का विवाह करते हैं तथा रुपये के लोभ में पड़ कर ऐसे अन्धेन जाते हैं कि वर की आयु आदि का भी कुछ विचार नहीं करते हैं अर्थात् वर चाहें साठ वर्ष का बुड्ढा क्यों न हो तो भी रुपये के लोभ से अपनी अबोध ( अज्ञान वा भोली, बालिका को उस जर्जर के लिये दुःखागार का द्वार खोल देते हैं, सत्य तो यह है कि जब से यहां कन्याविक्रय की कुरीति प्रचलित हुई तब ही से इस भारतवर्ष का सत्यानाश हो गया है, हे प्रभो ! क्या ऐसे निर्दयी माता पिता भी कन्या के माता पिता कहे जा सकते हैं ? जो कि केवल रुपये की तरफ देखते हैं और इस बात पर बिलकुल ध्यान नहीं देते हैं कि दो वर्ष के बाद यह बुटा मर जायगा और हमारी पुत्री विधवा होकर दुःखसागर में गोते मारेगी या हमारे कुल को कलङ्कित करेगी, इस कुरीति के प्रचार इस देश में जो २ हानियां हो चुकी हैं और हो रही हैं उन का वर्णन करने में हृदय विदीर्ण होता हैं तथा विस्तृत होने से उन का वर्णन भी पूरे तौर पर यहां नहीं कर सकते हैं और न उन के वर्णन करने की कोई आवश्यकता ही है, क्योंकि इस की हानियां प्रायः सुजनों को विदित ही हैं, अब आप से यहां पर यही निवेदन करना है कि हे प्रिय मित्रो ! आप लोग अपनी २ जाति में इस बुरी रीति को बिलकुल ही उठा देने (नेस्तनाबूद करने) का पूरा २ प्रतिबन्ध कीजिये, क्योंकि यदि इस ( बुरी रीति) को जड (मूल) से न उठा दिया जावेगा तो कालान्तर में अत्यन्त हानि की सम्भावना है, इस लिये इस कुरीतिको उठा देना और इन निम्न लिखित कतिपय बातों का भी ध्यान रखना आप का मुख्य कर्तव्य है कि जिस से दोनों तरफ किसी प्रकार का क्लेश न हो और मन न बिगड़े जैसा कि इस समय हमारे देश में हो रहा है, जिस के कारण भारत की प्रतिष्ठारूपी पताका भी छिन्न भिन्न हो गई है तथा उत्तम २ वर्णवालों को भी नीचा देखना पड़ता है, इस विषय में ध्यान रखने नोग्य ये बाते है- १ - बरात में बहुत भीड नहीं ले जानी चाहिये । २ - बखेर या लूट की चाल का उठाना चाहिये । ३ - बागबहारी में फजूल खर्ची नहीं करनी चाहिये । ४ - आतिशबाजी में रुपये को व्यर्थ में नहीं फूंकना चाहिये। ५- रण्डियों का नाच कराना मानो अशुभ मार्ग की प्रवृत्ति करना है, इस लिये इस कोभी उठा देना चाहिये । बुद्धिमान् जन यद्यपि इन पांचों ही कुरीतियों के फल को अच्छे प्रकार से जानते ही होंगे तथापि साधारण पुरुषों के ज्ञानार्थ इन कुरीतियों की हानियों का संक्षेप से वर्णन करते हैं:
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बरात में बहुत भीड़भाड़ का ले जाना - प्रथम तो यही विचार करना चाहिये कि बरात को खूब ठाठ वाट से ये जाने में दोनों तरफ के लोगोंको क्लेश होता है और अच्छा प्रबन्ध तथा आदर सत्कार नहीं बन पड़ता है, इस के सिवाय इधर उधरका धन भी बहुत खर्च हो
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