Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
ने भी यही आज्ञा दी है कि-प्रथम अच्छे प्रकार से विद्याध्ययन कर फिर विवाह कर के गृह में वास करें, क्योंकि विद्या, जितेन्द्रियता और पुरुषार्थ के प्राप्त हुए विना गृहस्थाश्रम का पालन नहीं किया जा सकता है और जिस ने इन ( विद्या
आदि) को प्राप्त नहीं किया वह पुरुष धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को भी नहीं सिद्ध कर सकता है।
४-सन्तानका विगड़ना-बहुत से रोग ऐसे हैं जो कि पूर्व क्रम से सन्तानों के हो जाते है अर्थात् माता पिता के रोग बच्चों को हो जाते हैं, इस प्रकार के रोगों में मुख्य २ ये रोग हैं-क्षय, दमा, क्षिप्तचित्तता (दीवानापन), मृगी, गोला, हरस (मस्सा), सुज़ाख, गर्मों, आंख और कान का रोग तथा कुष्ठ इत्यादि, पूर्वक्रम से सन्तान में होनेवाले बहुत से रोग अनेक समयों में वृद्धि को प्राप्त होकर जब सर्व कुटुम्ब का संहार कर डालते हैं उस समय लोग कहते हैं कि-देखो ! इस कुटुम्ब पर परमेश्वर का कोप हो गया है परन्तु वास्तव में तो परमेश्वर न तो किसी पर कोप करता है और न किसी पर प्रसन्न होता है किन्तु उन २ जीवों के कर्म के योग से वैसा ही संयोग आकर उपस्थित हो जाता है, क्योंकि क्षय और क्षिप्तचित्तता रोग की दशा में रहा हुआ जो गर्भ है वह भीक्ष्यरोगी तथा क्षिप्त चित्त (पागल) होता है, यह वैद्यकशास्त्र का नियम है, इसलिये चतुर पुरुषों को इस प्रकार के रोगों की दशा में विवाह करने तथा सन्तान के उत्पन्न करने से दूर रहना चाहिये।
किसी २ समय ऐसा भी होता है कि-सन्तान के होनेवाले रोग एक पिढी को छोड़ कर पोते के हो जाते हैं।
सन्तान के होनेवाले रोगों से युक्त बालक यद्यपि अनेक समयों में प्रायः पहिले तनदुरुस्त दीखते हैं परन्तु उन की उस तनदुरुस्ती को देखकर यह नहीं समझना चाहिये कि वे नीरोग हैं, क्योंकि ऐसे बालकों का शरीर रोग के ल यक अथवा रोग के लायक होने की दशा में ही होता है, ज्योंही रोग को उत्तेजन नेवाला कोई कारण बन जाता है त्योंही उन के शरीर में शीघ्र ही रोग दिखाई देने लगता है, यद्यपि सन्तान के होनेवाले रोगों का ज्ञान होने से तथा बचपन में ही योग्य सम्भाल रखने से भी सम्भव है कि उस रोग की बिलकुल जद न जावे तो भी मनुष्य का उचित उद्यम उस को कई दों में कम कर सकता तथा रोक भी सकता है।
५-अवस्था-शरीर को रोग के योग्य बनानेवाले कारणों में से एक कारण : अवस्था भी है, देखो ! बचपन में शरीर की गर्मी के कम होने से ठंढ जल्दी असर कर जाती है, उस की योग्य सम्भाल न रखने से थोड़ीसी ही देर में हाफनी, दम, खांसी और कफ आदि के अनेक रोग हो जाते हैं।
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