Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
जाता है, अतः बहुत धूमधाम से बरातको ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं है, वरन थोड़ी सी बरात को अच्छे सजाव के साथ ले जाना अति उत्तम हैं, क्योंकि थोड़ी सी बरात का दनों तरफ वाले उत्तम खान पान आदि से अच्छे प्रकार से सत्कार कर अपनी शोभा को कायम रख सकते हैं, इस के सिवाय यह भी विचार की बात है कि इस कार्य में विशेष धन का लगाना वृथा ही है, क्योंकि यह कोई चिरस्थायी कार्य तो हैं ही नहीं सिर्फ दो दिन की बा है, अधिक वरात के ले जाने में नेकनामी की प्रायः कम आशा होती है किन्तु बदनामी के ही सम्भावना रहती है, क्योंकि यह कायदे की बात है कि समर्थ पुरुष को भी बहुत से जनका उनकी इच्छा के अनुसार पूरा २ प्रबन्ध करने में कठिनता पड़ती है, बस जहां वरातिय के आदर सत्कार में जरा त्रुटि हुई तो शीघ्र ही बराती जन यही कहते हैं कि अमुक पुरुष की रात में गये थे वहां खाने पीने तक का भी कुछ प्रवन्ध नहीं था, सब लोग भूखों के मारे मर थे, पानी तथा दाना घास भी समय पर नहीं मिलता था, इधर सेठजी ले जाने के समय तो बडी सीप साप ( लल्लो चप्पो) करते थे परन्तु वहां तो दुम दवाये जनवासे ही में बैठे रहे इत्लादि, कहिये यह कितना अशोभा का स्थान है । एक तो धन जावे और दुसरे कुयश हो, इस में क्या कायदा है ? इस लिये बुद्धिमानों को थोड़ी ही सी बरात ले जाना चाहिये।
बखेर या लूट-बग्वेर का करना तो सर्व प्रकार ही महा हानिकारक कार्य है, देबो ! वग्येर का नाम सुनकर दूर २ के भगी आदि नीच जाति के लोग तथा लूले, लँगडे, अपाहज, कॅगले और दबल आदि इकद्र होते हैं, क्योंकि लालच बुरी बला है, इधर नगरनिवासियों में से सब ही छोटे बड़े छत और अटारियों पर तथा बाजारों में इकट्ठे होकर ठट्टके टट्ठ लग ज ते हैं, बखेर करनेवाले वहां पर मुट्टियां अधिक मारते हैं, जहां स्त्रियों तथा मनुष्यों के समूह अधिर होते हैं, उन मुट्टियों के चलते ही हजारों स्त्री पुरुष और बाल बच्चे तले ऊपर गिरते हैं कि मि से अवश्य ही दश वीस लोगों के चोट लगती है तथा एक आध मर भी जाते हैं, उस समय में गोभवश आये हए बेचारे अन्धे लले और लँगड़े आदि की तो अत्यन्त ही दर्दशा होती है और एसी अन्धाधुन्धी मचती है कि कोई किसी की नहीं सुनता है, इधर तो ऊपर से मुट्ठी धड़ाधड़ चली आती है तथा वह दूर की मुट्ठी जिस किसी की नाक वा कान में लगती है वह वैसा ही रह जाता है, ऊधर लुच्चे गुंड़े लोग स्त्रियों की ऐसी कुदशा देख उनकी नथ आदि में हाथ मार कर भागते हैं कि जिस से उन बेचारियों की नथ आदि तो जाती ही है किन्तु नाक आदि भी फट जाती है, यह तो मार्ग की दशा हुई-अब आगे बढ़िये-लूट का नाम सुनकर समधी के दब जे पर भी झुंडके झुण्ड लग जाते हैं और जब वहां रुपयों की मुट्ठी चलती है उस समय लूटनेवालों को वेहोसी हो जाती है और तले ऊपर गिरने से बहुत से लोग कुचल जाते हैं, किसी के दांत टूटते हैं, किसी के हाथ पैर टूटते हैं, किसी के मुख आदि अंगों से खून बहता और कोई पड़ा २ सिसकता है इत्यादि जो २ वहां दुर्दशा होती है वह देखने ही से जानी जाती है, भला बतलाइये तो इस बखेर से क्या लाभ है कि जिस में ऐसे २ कौतुक हों तथा धन में व्यर्थ में जावे ? देखो ! बखेर में जितना रुपया फेंका जाता है उस में से आधे से अधिक त मिट्टी आदि में मिल जाता है, बाकी एक तिहाई हट्टे कट्टे भंगी आदि नीचों को मिलता है जिस को पाकर वे लोग खूब मांस और मद्य का खान पान करते हैं तथा अन्य बुरे कामों में भी व्यर करते हैं, शेष रहा सो अन्य सामान्य जनों को मिलता है, परन्तु लूले लंगड़े और अपाहिजों के हाथ में तो कुछ भी नहीं आता है, बरन् उन बेचारों का तो काम हो जाता है अर्थात् अनेकों के चोटें लग जाती है, इस के अतिरिक्त किन्हीं २ के पहुँची, छल्ला, नमुनी और अंगुठी आदि भूषण जाते रहते हैं इस दशामें चाहे पानेवाले कुछ लोग तो सेठजीकी प्रशंसा भी करें परन्तु वहुधा वे जन कि जिने के चोट लग जाती है या जिन की कोई चीज़ जाती रहती है सेठजी तथा लालाजी के
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