Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
अधिक पैरों में करानी चाहिये, क्योंकि पैरों में तेल की अच्छी तरह से मालिश कराने से शरीर में अधिक बल आता है, तेल के मर्दन के गुण इस प्रकार हैं -
१-तेल की मालिश नीरोगता और दीर्घायु की करनेवाली तथा ताकत को बढ़ानेवाली है।
२-इस से चमड़ी सुहावनी हो जाती है तथा चमड़ी का रूखापन और र सरा जाता रहता है तथा अन्य भी चमड़ी के नाना प्रकार के रोग जाते रहते हैं और चमड़ी में नया रोग पैदा नहीं होने पाता है।
३-शरीर के सांधे नरम और मज़बूत हो जाते हैं। ४-रस और खून के बंद हुए मार्ग खुल जाते हैं। ५-जमा हुआ खून गतिमान् होकर शरीर में फिरने लगता है ।
६-खून में मिली हुई वायु के दूर हो जाने से बहुत से आनेवाले रोग रुक जाते हैं।
७-जीर्णज्वर तथा ताजे खून से तपाहुआ शरीर ठंढा पड़ जाता है।
८-हवा में उड़ते हुए ज़हरीले तथा चेपी ( उड़कर लगनेवाले) रोगोंके जन्तु तथा उन के परमाणु शरीर में असर नहीं कर सकते हैं।
९-नित्य कसरत और तेल का मर्दन करनेवाले पुरुपकी ताकत और कान्ति बढ़ती है अर्थात् पुरुषार्थ का जोर प्राप्त होता है।
१०-ऋतु तथा अपनी प्रकृति के अनुसार तेल में मसाले डालकर तैयार करके उस तेल की मालिश कराई जावे तो बहुत ही फायदा होता है, तेल के बना की मुख्य चार रीतियां हैं, उन में से प्रथम रीति यह है कि-पातालयंत्र से लौंग भिलावा और जमालगोटे का रस निकाल कर तेल में डाल कर वह तेल पकाया जावे, दूसरी रीति यह है कि-तेल में डालने की यथोचित दबाइयों को उकालकर उन का रस निकालकर तेल में डाल के वह ( तेल) पकाया जावे, तीसरी रीति यह है कि-घाणी में डालकर फूलों की पुट देकर चमेली और मोगरे आदि का तेल बनाया जावे तथा चौथी रीति यह है कि-सूखे मसालों को कूट कर जल में आई (गीला) कर तेल में डाल कर मिट्टी के वर्तन का मुख बंद कर दिन में रूप में रक्खे तथा रात को अन्दर रक्खे तथा एक महीने के बाद छान कर काम में आवे ।
वैद्यक शास्त्रों में दवाइयों के साथ में सब रोगों को मिटाने के लिये नारे २ तैल और घी के बनाने की विधियां लिखी है, वे सब विधियां आवश्यकता के
१-थोड़े दिनों तक निरन्तर तेल की मालिश कराने से उन का फायदा आप हा माल । होने लगता है ॥ २-परन्तु भिलावे आदि वस्तुओं का तेल निकालने समय पूरी होशियारी रखनी चाहिये ॥ ३-सुलसा आविका के चरित्र में लक्षपाक तेल का वर्णन आया है तथा कल्प पूत्र की टीका में राजा सिद्धार्थ की मालिश के विषय में शतपाक सहस्रपाक और लक्षपाक तै ठों का वर्णन आया है तथा उन का गुण भी वर्णन किया गया है।
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