Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
जिस प्रकार पानी किसी ऐसे वृक्ष को भी जो शीघ्र सूख जानेवाला है फिर हरा भरा कर देता है उसी प्रकार शारीरिक व्यायाम भी शरीर को हरा भरा रखता है अर्थात् शरीर के किसी भाग को निकम्मा नहीं होने देता है, इस लये सिद्ध है कि--शारीरिक बल और उस की दृढ़ता के रहने के लिये व्यायाम की अत्यन्त आवश्यकता है क्योंकि रुधिर की चाल को ठीक रखनेवाला केवल व्य याम है और मनुष्य के शरीर में रुधिर की चाल उस नहर के पानी के समान में जो कि किसी बाग में हर पटरी में होकर निकलता हुआ सम्पूर्ण वृक्षों की जड़ में पहुँच कर तमाम वाग को सींच कर प्रफुल्लित करता है, प्रिय पाठक गण ! देयो ! उस बाग में जितने हरे भरे वृक्ष और रंग विरंगे पुप्प अपनी छवि को दिर याने हैं और नाना भाँति के फल अपनी २ सुन्दरता से मन को मोहित करते हैं वह सब उसी पानी की महिमा है, यदि उस की नालियां न खोली जाती तो रम्पूर्ण बाग के वृक्ष और बेलबूटे मुरझा जाते तथा फूल फल कुम्हलाकर शुष्क हो जाते कि जिस से उस आनंदवाग में उदासी बरसने लगती और मनुष्यों के नेत्र को जो उन के विलोकन करने अर्थात देखने से तरावट व सुख मिलता है उ: के स्वम में भी दर्शन नहीं होते, ठीक यही दशा शरीररूपी बाग की रुधिररूपी पानी के साथ में समझनी चाहिये, सुजनो ! सोचो तो यही कि-इसी व्यायाम के बल से प्राचीन भारतवासी पुरुप नीरोग, सुडौल, बलवान् और योद्धा हो गये कि जिन की कीर्ति आजतक गाई जाती है, क्या किसी ने श्रीकृष्ण, राम, हनुमान , भीमसेन, अर्जुन और बाली आदि योद्धाओं का नाम नहीं सुना है कि-जि की ललकार से सिंह भी कोसों दूर भागते थे, केवल इसी व्यायामका प्रताप थे कि भारतवासियों ने समस्त भूमण्डल को अपने आधीन कर लिया था परन्तु वर्तमान समय में इस अभागे भारत में उस वीरशक्ति का केवल नाम ही रह गया है ।
बहुत से लोग यह कहते हैं कि-हमें क्या योद्धा बन कर किसी देश को जतना है वा पहलवान बन कर किसी से मलयुद्ध (कुश्ती) करना है जो हम दर याम के परिश्रम को उटावे इत्यादि, परन्तु यह उन की बड़ी भारी भूल है, कि देखो ! व्यायाम केवल इसी लिये नहीं किया जाता है कि-मनुष्य योद्धा वः पहलवान बने, किन्तु अभी कह चुके हैं कि-इस से रुधिर की गति के ठीक रहने से आरोग्यता बनी रहती है और आरोग्यता की अभिलापा मनप्यमात्र को क्या किन्तु प्राणिमात्र को होती है, यदि इस में आरोग्यता का गुण न होता तो प्र चीन जन इस का इतना आदर कभी न करते जितना कि उन्होंने किया है, सत्य पूछो तो व्यायाम ही मनुष्य का जीवनरूप है अर्थात् व्यायाम के विना मनुष्य का जीवन कदापि सुस्थिर दशा में नहीं रह सकता है, क्योंकि देखो ! इस के अ यास
१-दन महात्मा का वर्णन देखना हो तो कलिकाल सर्व जैनाचार्य श्रीहेमचन्द्रगरि कृत स्कृत रानायण को दयो।।
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