Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
देखो ! महाभारत ग्रन्थ में लिखा है कि
मद्यमांसाशनं रात्रौ भोजनं कन्दभक्षणम् ॥ ये कुर्वन्ति वृथा तेषां तीर्थयात्रा जपस्तपः ॥ १ ॥
अर्थात् जो पुरुष मद्य पीते हैं, मांस खाते हैं, रात्रि में भोजन करते हैं और कंद को खाते हैं उन की तीर्थयात्रा, जप और तप सब वृथा है ॥ १ ॥ मार्कण्डेयपुराण का वचन है कि
अस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिरमुच्यते ॥
अनं मांससमं प्रोक्तं, मार्कण्डेयमहर्षिणा ॥ १ ॥
अर्थात् दिवानाथ (सूर्य) के अस्त होने के पीछे जल रुधिर के समान और अन्न मांस के समान कहा है, यह वचन मार्कण्डेय ऋषि का है ॥ १ ॥ इसी प्रकार महाभारत ग्रन्थ में फिर कहा गया है कि
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चत्वारि नरकद्वारं, प्रथमं रात्रिभोजनम् ॥ परस्त्रीगमनं चैव, सन्धानानन्तकायकम् ॥ १ ॥ ये रात्रौ सर्वदाहारं वर्जयन्ति सुमेधसः ॥ तेषां पक्षोपवासस्य फलं मासेन जायते ॥ २ ॥ नोदकमपि पातव्यं, रात्रावत्र युधिष्ठिर ॥ तपखिनां विशेषेण गृहिणां ज्ञानसम्पदाम् ॥ ३ ॥
पक्ष
अर्थात्-चार कार्य नरक के द्वाररूप हैं - प्रथम रात्रि में भोजन करना, दूसरापर स्त्री में गमन करना, तीसरा- संघाना ( आचार ) खाना और चौथा - अनन्त काय अर्थात् अनन्त जीववाले कन्द मूल आदि वस्तुओं को खाना ॥ १ ॥ जो बुद्धिमान् पुरुष एक महीने तक निरन्तर रात्रिभोजन का त्याग करते हैं उन को एक के उपवास का फल प्राप्त होता है ॥ २ ॥ इस लिये हे युधिष्ठिर ! ज्ञानी गृहस्थ को और विशेष कर तपस्वी को रात्रि में पानी भी नहीं पीना चाहिये ॥ ३ ॥ इसी प्रकार से सब शास्त्रों में रात्रिभोजन का निषेध किया है परन्तु ग्रन्थ के विस्तार के भय से अब विशेष प्रमाणों को नहीं लिखते हैं, इसलिये बुद्धिमानों को उचित है कि सब प्रकार के खाने पीने के पदार्थों का कभी भी रात्रि में उपयोग न करें, यदि कभी वैद्य कठिन रोगादि में भी कोई दवा या खुराक को रात्रि में उपयोग के लिये बतलावे तो भी यथा शक्य उसे रात्रि में नहीं लेना चाहिये
१ - पृथिवी के नीचे जो वस्तु उत्पन्न होती है उसे कंद कहते हैं, जैसे- आलू, मूली, कांदा और गाजर आदि ॥
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