Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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ग्रजा जनो के आधीन नहीं हैं किन्तु उन में से कुछ नियम स्वाधीन हैं, तथा कुछ नियम पराधीन हैं, देखो! आरोग्यताजन्य सुख के लिये प्रत्येक पुरुष को उचित
आहार और विहार की आवश्यकता है इस लिये उस के नियमों को समझ कर उनकी पावन्दी रखना यह प्रत्येक पुरुष का धर्म है, क्योंकि आहार और विहार के भावश्यक नियम प्रत्येक पुरुष के स्वाधीन हैं परन्तु नगरों की सफाई और आवश्यक प्रबन्धों का करना कराना आदि अवश्यक नियम प्रत्येक पुरुष के आधीन नहीं हैं, किन्तु ये नियम सभा के लोगों के तथा सर्कार के नियत किये हुए शहर सफाई खाते के अमलदारों के आधीन हैं, इसलिये इन को चाहिये कि प्रजा के आरोग्यताजन्य सुख के लिये पूरी २ निगरानी रखें तथा जो २ आरोग्यता के आवश्यक उपाय प्रजा के आधीन हैं उन पर प्रजा को पूरा ध्यान देना चाहिये, क्योंकि उन उपायों के न जानने से तथा उन पर पूरा ध्यान न देने से अज्ञान प्रजाजन अनेक उपद्रवों और रोगों के कारणों में फंस जाते हैं, इसलिये आरोग्यता के आवश्यक उपायों का जानना प्रत्येक छोटे बड़े मनुष्यमात्र का मुख्य कार्य है, क्योंकि इन के न जानने से बड़ी हानि होती है, देखो! कभी २ एक मनुष्य की ही अज्ञानता से हज़ारों लाखों मनुष्यों की जान को जोखम पहुँच जाती है, परन्तु यः सब ही जानते हैं कि साधारण पुरुप उपदेश और शिक्षा के बिना कुछ भी नहीं सीख सकते हैं और न कुछ जान सकते हैं, इसलिये अज्ञान प्रजाजनों को अहार और विद्यर आदि आरोग्यता की आवश्यक बातों से विज्ञ करना मुख्यतया विद्वान् वैद्य डाक्टर और सर्कार का मुख्य कर्तव्य है अर्थात् लोग आरोग्यता के द्वारा सुखी रहें इस प्रकार के सद्भाव को हृदय में रखनेवाले वैद्य और डाक्टरों को वैद्यक विद्या का अवश्य उद्धार करना चाहिये अर्थात् वैद्य और डाक्टरों को उचित है कि वे रोगों की उत्पत्ति के कारणों को खोज २ कर जाहिर करें, उन करणों को हटावें और वे कारण फिर न प्रकट हो सकें, इस का पूरा प्रबंध करें और उन कारणों के हटाने के योग्य उपायों से प्रजाजनो को विज्ञ करें, तथा प्रजाजनों को चाहिये कि उन आवश्यक उपायों को समझ कर उन्हीं के अनुसार वर्गव करें, उस से विरुद्ध कदापि न चलें, क्योंकि उस से विरुद्ध चलने से नियमों की पावन्दी जाती रहती है और प्रबन्ध व्यर्थ जाता है, देखो ! म्युनिसिपल कमेटी के अधिकारी आदि जन बड़े २ रास्तों में गली कूचों में तथा सब महल्लों में जाकर तथा खोज कर चाहें जितनी सफाई रक्खें परन्तु जब तक प्रजा जन अपने २ घर आंगन में इकट्ठी हुई रोगों को पैदा करनेवाली मलिनता को नहीं हरावेंगे तथा आहार विहार के आवश्यक स्वाधीन नियमों को नहीं जानेंगे तथा उन्हीं के अनुसार वर्ताव नहीं करेंगे तबतक शहर की सफाई और किये हुए आवश्यक प्रवन्धों से कुछ भी फल नहीं निकल सकेगा।
वर्तमान में जो आरोग्यता में बाधा पड़ रही है और सब आवश्यक नियम और प्रबन्ध अस्थिरवत् हो रहे हैं उस का कारण यही है कि इस समय में अज्ञान
२८ जै० सं०
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