Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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में प्रायः दूध और मीठा खाया जाता है जिस के खाने से पित्त शान्त हो जाता है, तात्पर्य यह है कि प्राचीन विद्वानों और बुद्धिमानों ने जो २ व्यवहार ऋतु आदि के आहार विहार को विचार कर प्रवृत्त किये हैं वे सब ही मनुष्यों के लिये परम लाभदायक हैं परन्तु उन के नियमों को ठीक रीति से न जानना तथा नियमों के जाने विना उन का मनमाना वर्त्तीव करना कभी लाभदायक नहीं हो सकता है ।
अत्यन्त शोक के साथ लिखना पड़ता है कि यद्यपि प्राचीन सर्व व्यवहारों को पूर्वाचार्यांने बड़ी दूरदर्शिता के साथ वैद्यक विद्या के नियमों के अनुसार बांधा था कि जिन से सर्व साधारण को आरोग्यता आदि सुखों की प्राप्ति हो परन्तु वर्त्तमान में इतनी अविद्या बढ़ रही है कि लोग उन प्राचीन समय के पूर्वाचार्यों के बांधे हुए सब व्यवहारों के असली तत्त्व को न समझ कर उन में भी मनमाना अनुचित व्यवहार करने लगे हैं, जिस से सुख के बदले उलटी दुःख की ही प्राप्ति होती है, अतः सुजनों का यह कर्तव्य है कि इस ओर अवश्य ध्यान देकर वैद्यक विद्या के नियमों के अनुसार बांधे हुए व्यवहारों के तत्व को खूब समझ कर उन्हीं के अनुसार स्वयं वर्ताव करें तथा दूसरों को भी उन की शिक्षा देकर उन प्रवृत्त करें कि जिस से देश का कल्याण हो तथा सर्वसाधारण की हितसिद्धि होने से उभय लोक
सुखों की प्राप्ति हो ।
यह चतुर्थ अध्याय का सदाचारवर्णन नामक नवां प्रकरण समाप्त हुआ ||
दशवां प्रकरण | रोगसामान्य कारण ।
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रोग का विवरण |
आरोग्यता की दशा में अन्तर पड़ जाने का नाम रोग है परन्तु नीरोगावस्था और रोगावस्था के बीच की मर्यादा की कोई स्पष्ट पहिचान नहीं है कि इन दोनों के बीच की दशा कैसी है और उस में क्या २ असर है, इस लिये इन दोनों अवस्थाओं का भी पूरा २ वर्णन करना कुछ कठिन बात है, देखो! आदमी को ज़रा भी खबर नहीं पड़ती है और वह एक दशा से धीरे २ दूसरी दशा में जा गिरता है अर्थात् नीरोगावस्था से रोगावस्था में पहुँच जाता है ।
रोगी बनाने का पूरा साधन है, इस में कोई सन्देह नहीं है, क्यों कि शरद् ऋतु में गरिष्ठ भोजन को पेट भर कर गलेतक खाना मानो मौत को पुकारना है और बहुत से लोग इस के फल को पाचुके हैं और पाते हैं, परन्तु तो भी चेतते नहीं हैं और न यह विचारते हैं कि श्राद्ध का असली प्रयोजन क्या है ॥
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