Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा। दारू दिल्ली आगरो, दारू बीकानेर ॥ दारू पीयो साहिबा, कोई सौ रुपियां रो सेर ॥२॥ दारू तो भक भक करे, सीसी करे पुकार ॥
हाथ पियालो धन खड़ी, पीयो राजकुमार ॥३॥ गांजा-जिस ने न पी गांजे की कली । उस लड़के से लड़की भली ॥१॥ भांग-घोट छांण घट में धरी, ऊठत लहर तरङ्ग ॥
विना मुक्त वैकुण्ठ में, लिया जात है भङ्ग ॥१॥ जो तू चाहै मुक्त को, सुण कलियुग का जीव ।। गंगोदक मे छाण कर, भंगोदक कू पीव ॥२॥ भंग कहै सों बावरे, विजया कहें सो कूर ॥
इसका नाम कमलापती, रहे नैन भर पूर ॥ ३ ॥ तमाखू-कृष्ण चले वैकुण्ठ को, राधा पकड़ी बांहि ॥
यहां तमाखू खायलो, वहां तमाखू नांहि ॥ १ ॥ इत्यादि । प्रिय सुजन पुरुपो ! विचारशीलों का अब यही कर्त्तव्य है कि वैद्यशास्त्र आदिसे निषिद्ध तथा महा हानिकारक इन कुव्यसनों का जडमूल से ही नाश कर दें अर्थात् स्वयं इन का त्याग कर दूसरों को भी इन की हानियां समझा कर इन का त्याग करने की शिक्षा दें, क्योंकि इन से ऊपर कहीहुई हानियों के सिवाय कुछ ऐसी भी हानियां होती हैं जिन से मनुष्य किसी काम का ही नहीं रहता है देखिये । जो पुरुष जितना इन नशों को पीता है उतनी ही उसकी रुचि और भी अधिक बढ़ती जाती है जिस से उस का फिर इन व्यसनों से निकलना कठिन हो कर इन्हीं में जीवन का त्याग करना पड़ता है, दूसरे-इन में रुपया तथा समय भी व्यर्थ जाता है, तीसरे-इन के सेवन से बहुधा मनुष्य पागल भी हो जाते हैं और बहुतसे मर भी जाते हैं, चौथे-छोटे २ मनुष्यों में भी नशेबाजों की प्रतिष्ठा नहीं रहती है फिर भला बड़े लोगों में तो ऐसों को कौन पूंछता है, अतः समझदार लोगों को इन की ओर दृष्टि भी नहीं डालनी चाहिये।
सर्वहितकारी कर्त्तव्य । शरीर की आरोग्यता रखने की जो २ मुख्य बातें हैं उन सब का जानना और उन्हीं के अनुसार चलना मनुष्यमात्र को योग्य है, इस विषय में आवश्यक बातों का संग्रह संक्षेप से इस ग्रन्थमें कर दिया गया है, अब विचारणीय विषय यह है कि-शरीर की आरोग्यता के लिये जो २ आवश्यक नियम हैं वे सब ही सामान्य
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