Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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वर्तमान समय में जो राजा आदि लोग सिंह का शिकार करते हैं वे भी अनेक छल बल कर तथा अपनी रक्षा का पूरा प्रबंध कर छिपकर शिकार करते हैं, विना शस्त्र के तो सिंह की शिकार करना दूर रहा किन्तु समक्ष में ललकार कर तलवार या गोली के चलानेवाले भी आर्यावर्त भर में दो चार ही नरेश होंगे।
धर्मशास्त्रों का सिद्धान्त है कि जो राजे महाराजे अनाथ पशुओं की हत्या करते हैं उन के राज्य में प्रायः दुर्भिक्ष होता है, रोग होता है तथा वे सन्तानरहित होते हैं, इत्यादि अनेक कष्ट इस भव में ही उन को प्राप्त होते हैं और पर भव में नरक में जाना पड़ता है, विचार करनेकी बात है कि यदि हमको दूसरा कोई मारे तो हमारे जीव को कैसी तकलीफ मालूम होती है, उसी प्रकार हम भी जब किसी प्राणी को मारें तो उस को भी वैसा ही दुःख होता है, इसलिये राजे महाराजों का यही मुख्य धर्म है कि अपने २ राज्य में प्राणियों को मारना बंद कर दें और स्वयं भी उक्त व्यसन को छोड़ कर पुत्रवत् सब प्राणियों की तन मन धन से रक्षा करें, इस संसार में जो पुरुष इन बड़े सात व्यसनों से बचे हुए हैं उन को धन्य है और मनुष्यजन्म का पाना भी उन्हीं का सफल समझना चाहिये, और भी बहुत से हानिकारक छोटे २ व्यसन इन्हीं सात व्यसनों के अन्तर्गत हैं, जैसे-कौड़ियों से तो जुए को न खेलना परन्तु अनेक प्रकार का फाटका (चांदी आदिका सट्टा) करना, २-नई चीजों में पुरानी और नकली चीज़ों का बैंचना, कम तौलना, दगाबाज़ी करना, ठगाई करना (यह सब चोरी ही है), ३-अनेक प्रकार का नशा करना, ४-घर का असबाव चाहें बिक ही जावे परन्तु मोल मँगाकर नित्य मिठाई खाये विना नही रहना, ५-रात्रि को विना खाये चैन का न पड़ना, ६-इधर उधर की चुगली करना, ७-सत्य न बोलना आदि, इस प्रकार अनेक तरह के व्यसन हैं, जिन के फन्दे में पड़ कर उन से पिण्ड छुड़ाना कठिन हो जाता है, जैसा कि किसी कवि ने कहा है कि-"डांकण मन्त्र अफीम रस, तस्कर ने जूआ ॥ पर घर रीझी कामणी, ये छूटसी मूआ" ॥ १ ॥ यद्यपि कवि का यह कथन बिलकुल सत्य है कि ये बातें मरने पर ही छूटती हैं तथापि इन की हानि को समझकर जो पुरुष सच्चे मन से छोड़ना चाहे वह अवश्य छोड़ सकता है, इस लिये व्यसनी पुरुष को चाहिये कि यथाशक्य व्यसन को धीरे २ कम करता जावे, यही उस (व्यसन) के छूटने का एक सहज उपाय है तथा यदि आप व्यसन में पड़कर उस से निकलने में असमर्थ हो जावे तो अपनी सन्तति का तो उस से अवश्य बचाव रक्खे जिस से भावी में वह तो दुर्दशा में न पड़े।
इन पूर्व कहे हुए सात महा व्यसनों के अतिरिक्त और भी बहुत से कुव्यसन हैं जिन से बचना बुद्धिमानों का परम धर्म है, हे पाठक गणो ! यदि आप को अपनी शारीरिक उन्नति का, सुखपूर्वक धन को प्राप्त करने का तथा उस की रक्षा
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