Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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डाक्टर टेलर साहब का कथन है कि - " जो मनुष्य तमाखू के कारखानों में काम करते हैं उन के शरीरमें नाना प्रकार के रोग हो जाते हैं अर्थात् थोड़े ही दिनों में उन के शिर में दर्द होने लगता है, जी मचलाने लगता है, बल घट जाता है, सुस्ती घेरे रहती है, भूख कम हो जाती है और काम करने की शक्ति नहीं रहती है” इत्यादि ।
बहुत से वैद्यों और डाक्टरोंने इस बातको सिद्ध कर दिया है कि इस के धुएँ में ज़हर होता है इसलिये इस का धुआं भी शरीर की आरोग्यता को हानि पहुँचाता है अर्थात् जो मनुष्य तमाखू पीते हैं उन का जी मचलाने लगता है, कय होने लगती है, हिचकी उत्पन्न हो जाती है, श्वास कठिनता से लिया जाता है और नाड़ी की चाल धीमी पड़ जाती है, परन्तु जब मनुष्य को इस का अभ्यास हो जाता है तब ये सब बातें सेवन के समय में यद्यपि कम मालूम पड़ती हैं परन्तु परिणाम में अत्यन्त हानि होती है ।
डाक्टर स्मिथ का कथन है कि - तमाखू के पीने से दिल की चाल पहिले तेज़ और फिर धीरे २ कम हो जाती है ।
वैद्यक ग्रन्थों से यह स्पष्ट प्रकाशित है कि - तमाखू बहुत ही ज़हरीली ( विषैली) वस्तु है, क्योंकि इस में नेकोशिया कार्बोनिक एसिड और मगनेशिया आदि वस्तुयें मिली रहती हैं जो कि मनुष्य के दिल को निर्बल कर देती हैं कि जिस से खांसी और दम आदि नाना प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, आरोग्यता में अन्तर पड़ जाता है, दिल पर कीट अर्थात् मैल जम जाता है, तिल्ली का रोग उत्पन्न होकर चिरकालतक ठहरता है तथा प्रतिसमय में जी मचलाता रहता है और मुख में दुर्गन्ध बनी रहती है, अब बुद्धि से विचारने की यह बात है कि लोग मुसलमान तथा ईसाई आदि से तो बड़ा ही परहेज़ करते हैं परन्तु वाह री तमाखू ! तेरी प्रीति में लोग धर्म कर्म की भी कुछ सुध और परवाह न कर सब ही से परहेज़ को तोड़ देते हैं, देखो ! तमाखू के बनानेवाले मुसलमान लोग अपने ही वर्त्तनों में उसे बनाते हैं और अपने ही घड़ों का पानी डालते हैं उसी को सब लोग मज़े से पीते हैं, इस के अतिरिक्त एक ही चिलम को हिन्दू मुसलमान और ईसाई आदि सब ही लोग पीते हैं कि जिस से आपस में अवखरात ( परमाणु ) अदल बदल हो जाते हैं तो अब कहिये कि हिन्दू तथा मुसलमान या ईसाइयों में क्या अन्तरे रहा, क्या इसी का नाम शौच वा पवित्रता है ?
१ - तमाखू बनाते समय उन का पसीना भी उसी में गिरता रहता है, इत्यादि अनेक मलिनतायें भी तमाखू में रहती हैं ।। २- देखो ! जिस चिलम को प्रथम एक हिन्दू ने पिया तो कुछ उस के भीतर अवखरात गर्मी के कारण अवश्य चिलम में रह जायेंगे फिर उसी को मुसलमान और ईसाई ने पिया तो उस के भी अवखरात गमी के कारण उस चिलम में रह गये, फिर उसी चिलम को जब ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यादि ने पिया तो कहिये अब परस्पर में क्या भेद रह गया ? ॥
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