Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
इस प्रकार रात्रि के व्यतीत होने पर प्रातःकाल चार बजे उठकर पुनः पूर्व लिखे अनुसार सब वर्ताव करना चाहिये।
यह चतुर्थ अध्याय का दिनचर्यावर्णन नामक आठवां प्रकरण समाप्त हुआ ॥
नवां-प्रकरण । सदाचारवर्णन ।
सदाचार का खरूप । यद्यपि सद्विचार और सदाचार, ये दोनों ही कार्य मनुष्य को दोनों भवों में सुख देते हैं परन्तु विचार कर देखने से ज्ञात होता है कि इन दोनों में सदाचार ही प्रबल है, क्योंकि सद्विचार सदाचार के आधीन है, देखो सदाचार करनेवाले (सदाचारी) पुण्यवान् पुरुष को अच्छे ही विचार उत्पन्न होते हैं और दुराचार करनेवाले (दुराचारी) दृष्ट पापी पुरुष को बुरे ही विचार उत्पन्न होते हैं, इसी सत्य शास्त्रों में सदाचार की बहुत ही प्रशंसा की है, तथा इस को सर्वोपरि माना है, सदाचार का अर्थ यह है कि मनुष्य दान, शील, व्रत, नियम, भलाई, परोपकार, दया, क्षमा, धीरज और सन्तोष के साथ अपने सर्व व्यापारों को कर के अपने जीवन का निर्वाह करे।
सदाचारपूर्वक वर्ताव करनेवाले पुरुष के दोनों लोक सुधरते हैं, तथा मनुष्य में जो सर्वोत्तम गुण ज्ञान है उस का फल भी यही है कि सदाचारपूर्वक ही वर्ताव किया जावे, इस लिये ज्ञान को प्राप्तकर यथाशक्य इसी मार्गपर चलना चाहिये, हां यदि कर्मवश इस मार्ग पर चलने में असमर्थ हो तो इस मार्गपर चलने के लिये प्रयत्न तो अवश्य ही करते रहना चाहिये तथा अपने इरादे को सदा अछा रखना चाहिये, क्योंकि यदि मनुष्य ज्ञान को पाकर भी ऐसा न करे तो ज्ञान का मिलना ही व्यर्थ है।
१-यह दिनचर्याका वर्णन संक्षेप से किया गया है, इस का विस्तारपूर्वक और अधिक वर्णन देखना हो तो वैद्यक के दूसरे ग्रन्थों में देख लेना चाहिये, इस दिनचर्या में स्त्रीप्रसंग का वन ग्रन्थ के विस्तार के भय से नहीं लिखा गया है तथा इस के आवश्यक नियम पूर्व लिख भी चुके हैं अतः पुनः यहांपर उस का वर्णन करना अनावश्यक समझ कर भी नहीं लिखा है ॥ २-इस ग्रन्थ के इसी अध्याय के छटे प्रकरण में लिखे हुए पथ्य विहार का भी समावेश इसी प्रकरण में हो सकता है ॥ ३-क्योंकि "बुद्धिः कर्मानुसारिणी" अर्थात् बुद्धि और विचार, ये दोनों कर्म के अनुसार होते हैं अर्थात् मनुष्य जैसे भले वा बुरे कार्य करेगा वैसे ही उस के बुद्धि और विचार भी भले वा बुरे होंगे, यही शास्त्रीयसिद्धान्त है ।। ४-इसी प्रकार के वर्ताव का नाम श्रावक व्यवहार भी है।
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