Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय । के विषय में जो बुद्धिमानों का यह कथन है कि-"इस को खावे उसका घर और मुंह भ्रष्ट, इस को पिये उसका जन्म और मुँह भ्रष्ट, इस को सूंधे उस के कपड़े भ्रष्टे" सो यह बात बिलकुल ही सत्य है तथा इस का अनुभव भी प्रायः सब ही को होगा, तमाखू के कदरदान (कदर करनेवाले) बड़े आदमी तमाखू का रस थूकने के लिये पीकदान रखते हैं परन्तु हम को बड़ा आश्चर्य होता है कि जिस तमाखू के थूक को वे जठराग्नि का उपयोगी समझते हैं उस को निरर्थक क्यों जाने देते हैं ? __अब जो लोग मुखवास के लिये प्रायः सुपारी का सेवन करते हैं उस के विषय में भी संक्षेप से लिखकर पाठकगण को उस के हानि लाभ दिखलाते हैं:
सुपारी मुखवास के लिये एक अच्छी चीज़ है परन्तु इसे बहुत ही थोड़ा खाना चाहिये, क्योंकि इस का अधिक खाना हानि करता है, पूर्व तथा दक्षिण में स्त्री पुरुष छालियों को तथा बीकानेर आदि मारवाड़ देशस्थ नगरों में कत्थे में उबाली हुई चिकनी सुपारियों को सेरों खा जाते हैं, इस से परिणाम में हानि होती है, यद्यपि इस का सेवन स्त्रियों के लिये तो फिर भी कुछ अच्छा है परन्तु पुरुषों को तो नुक्सान ही करता है, सुपारी में शरीर के सांधों को तथा धातु को ढीला करने का स्वभाव है, इस लिये खासकर पुरुषों को इस का अधिक खाना कभी भी उचित नहीं है, इस लिये आवश्यकता के समय भोजन करने के बाद इस का ज़रा सा टुकड़ा मुख में डालकर चाबना चाहिये तथा उस का थूक निगल जाना चाहिये परन्तु मुख में बचाहुआ उस का कूजट (गुट्टा) थूक देना चाहिये, सुपारी का जादा टुकड़ा कंठ को विगाड़ता है।
पाने का सेवन यदि किया जावे तो वह ताज़ा और मुह में गर्मी न करे ऐसा होना चाहिये, किन्तु व्यसनी बन कर जैसा मिले वैसा ही चाब लेने से उलटी हानि होती है, तथा सब दिन पानों को चाबते रहना जंगलीपन भी समझा जाता है, बहुत पान खाने से वह आंख और शरीर का तेज, बाल, दाँत, जठराग्नि, कान, रूप और ताकत को नुकसान पहुंचाता है, इसलिये थोड़ा खाना ठीक है।
पानों के साथ में जो कत्थे और चूने का उपयोग किया जाता है उस में भी किसी तरह की दूसरी चीज़की मिलावट नहीं होनी चाहिये तथा इन दोनों को पानों में ठीक २ (न्यूनाधिक नहीं) लगाना चाहिये।
पान और सुपारी के सिवाय-इलायची, लौंग और तज भी मुख सुगन्धि की चीजें हैं, इस में से इलायची तर गर्म है और फायदेमन्द होती है परन्तु इसे भी अधिक नहीं खाना चाहिये, तज और लौंग वायु और कफ की प्रकृतिवाले को थोड़ी २ खानी चाहिये।
१-दक्षिण के लोग पान के साथ तमाखू खाते हैं, उन का भी यही हाल है ॥ २-पान और नागपूर के सन्तरे उत्तम होते है ॥ ३-शीतकाल में बँगला पान फायदा करता है। ४-पान खानेवालों को यदि इन सब बातों का भी ज्ञान न हो तो उन को पान खाने का अभ्यास रखना ही व्यर्थ है ॥ ५-खाने में छोटी (सफेद) इलायची का उपयोग करना चाहिये।
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