Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय । आठवां प्रकरण । दिनचर्यावर्णन।
प्रातःकाल का उठना। यह बात तो स्पष्टतया प्रकट ही है कि-स्वाभाविक नियम के अनुसार सोने के लिये रात और कार्य करने के लिये दिन नियत है, परन्तु यह भी स्मरण रहे किप्रातःकाल जब चार घड़ी रात बांकी रहे तब ही नींद को छोड़कर जागृत हो जाना अब्बल दर्जे का काम है, यदि उस समय अधिक निद्रा आती हो अथवा उठने में कुछ अड़चल मालूम होती हो तो दूसरा दर्जा यह है कि दो घड़ी रात रहने पर उठना चाहिये और तीसरा दर्जा सूर्य चढ़े बाद उठने का है, परन्तु यह दर्जा निकृष्ट और हानिकारक है, इसलिये आयु की रक्षा के लिये मनुष्यों को रात्रि के चौथे पहर में आलस्य को त्याग कर अवश्य उठना चाहिये, क्योंकि जल्दी उठने से मन उत्साह में रहता है, दिन में काम काज अच्छी तरह होता है, बुद्धि निर्मल रहती है और स्मरणशक्ति तेज़ रहती है, पढ़नेवालों के लिये भी यही (प्रातःकाल का) समय बहुत श्रेष्ठ है, अधिक क्या कहें इस विषय के लाभों के वर्णन करने में बड़े २ ज्ञानी पूर्वाचार्य तत्त्ववेत्ताओं ने अपने २ ग्रन्थों में लेखनी को खूब ही दौड़ाया है, इस लिये चार घड़ी के तड़के उठने का सब मनुष्यों को अवश्य अभ्यास डालना चाहिये, परन्तु यह भी स्मरण रहे कि विना जल्दी सोये मनुष्य प्रातःकाल चार बजे कमी नहीं उठ सकता है, यदि कोई जल्दी सोये उक्त समय में उठ भी जावे तो इस से नाना प्रकार की हानियां होती हैं अर्थात् शरीर दुर्बल होजाता है, शरीर में आलस्य जान पड़ता है, आंखों में जलनसी रहती है, शिर में दर्द रहता है तथा भोजन पर भी ठीक रुचि नहीं रहती है, इस लिये रात को नौ वा दश बजे पर अवश्य सो रहना चाहिये कि जिस से प्रातःकाल में विना दिक्कत के उठ सके, क्योंकि प्राणीमात्र को कम से कम छः घण्टे अवश्य सोना चाहिये, इस के कम सोने में मस्तक का रोग आदि अनेक विकार उत्पन्न होजाते हैं, परन्तु आठ घण्टे से अधिक भी नहीं सोना चाहिये, क्योंकि आठ घण्टे से अधिक सोने से शरीर में आलस्य वा भारीपन जान पड़ता है और कार्यों में भी हानि होने से दरिद्रता घेर लेती है, इसलिये उचित तो यही है कि रात को नौ या अधिक से अधिक दश बजे पर अवश्य सो रहना चाहिये, तथा प्रातःकाल चार घड़ी के तड़के अवश्य उठना चाहिये, यदि कारणवश चार घड़ी के तड़के का उठना कदाचित् न निभसके तो दो घड़ी के तड़के तो अवश्य उठना ही चाहिये। प्रातःकाल उठते ही पहिले स्वरोदय का विचार करना चाहिये, यदि चन्द्र स्वर
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