Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
चलता हो तो वायां पांव और सूर्य स्वर चलता हो तो दाहिना पांव जमीन पर रख कर थोड़ी देरतक विना ओठ हिलाये परमेष्टी का स्मरण करना चाहिये, परन्तु यदि सुषुम्ना स्वर चलता हो तो पलँगपर ही बैटे रहकर परमेष्टी का ध्यान करना ठीक है, क्योंकि यही समय योगाभ्यास तथा ईश्वराराधन अथवा कठिन से कठिन विपयों के विचारने के लिये नियत है, देखो! जितने सुजन और ज्ञानी लोग आजतक हुए हैं वे सब ही प्रातःकाल उठते थे परन्तु कैसे पश्चात्ताप का वि य है कि इन सब अकथनीय लाभों का कुछ भी विचार न कर भारतवासी जन व रवटें ही लेते २ नौ बजा देते हैं इसी का यह फल है कि वे नाना प्रकार के कुशों में सदा फंसे रहते हैं।
प्रातःकाल का वायसेवन । प्रातःकाल के वायु का सेवन करने से मनुष्य हृष्ट पुष्ट बना रहता है, संर्घायु और चतुर होता है, उसकी बुद्धि ऐसी तीक्ष्ण हो जाती है कि कठिन से कठिन आशय कोभी सहज में ही जान लेता है और सदा नीरोग बना रहता है, इसी (प्रातःकाल के) समय बस्ती के बाहर वागों की शोभा के देखने में बड़ा आनन्द मिलता है, क्योंकि इसी समय वृक्षों से जो नवीन और स्वच्छ प्राणप्रद वायु निकलता है वह हवा के सेवन के लिये बाहर जानेवालों की वास के साथ न के शरीर के भीतर जाता है, जिस के प्रभाव से मन कली की भांति बिल जान और शरीर प्रफुल्लित हो जाता है, इसलिये हे प्यारे भ्रातृगणो! हे सुजनो ! र हे वर की लक्ष्मीयो ! प्रातःकाल तड़के जागकर स्वच्छ वायु के सेवन का अभ्यार करो कि जिस से तुम को व्याधिजन्य क्लेश न सहने पड़े और सदा तुम्हारा मन प्रफुल्लित और शरीर नीरोग रहे, देखो! उक्त समय में बुद्धि भी निर्मल रहती है इसलिये उसके द्वारा उभय लोकसंबन्धी कार्यों का विचार कर तुम अपने समय को लौकिक तथा पारलौकिक कार्यों में व्यय कर सफल कर सकते हो।
देखो ! प्रातःकाल चिड़ियां भी कैसी चुहचुहातीं, कोयले भी कृ कृ करनी मैना तोता आदि सब पक्षी भी मानु उस परमेष्टी परमेश्वर के स्मरण में चित्त दगाते और मनुष्यों को जगाते हैं, फिर कैसे शोक की बात है कि-हम मनुष्य लो। सब से उत्तम होकर भी पक्षी पखेरू आदि से भी निपिह कार्य करें और उन के गाने पर भी चैतन्य न हों।
प्रातःकाल का जलपान । उपर कहे हुए लाभों के अतिरिक्त प्रातःकाल के उठने से एक यह भी बड़ा लाभ हो सकता है कि-प्रातःकाल उठकर सूर्य के उदय से प्रथम थोड़ासा शीतल जल पीने से ववासीर और ग्रहणी आदि रोग नष्ट हो जाते हैं ।
-खरोदय के विषय में इसी ग्रन्थ के पांचवे अध्याय में वर्णन किया जायेगा, वहां इस का सम्पूर्ण विषय देख लेना चाहिये ।।
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