Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
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यद्यपि यह तीनों प्रकार की अनुकूलता इस देश के निवासियों को पूरे तौर से प्राप्त नहीं है, क्योंकि यह देश समशीतोष्ण है तथापि प्रकृति और ऋतु की अनुकूलता तो 'इस देश के निवासियों के भी आधीन ही है, क्योंकि अपनी प्रकृति को ठंढी अर्थात् दृढ़ता और सत्वगुण से युक्त रखना यह बात स्वाधीन ही है, इसी प्रकार वीर्य को सुधारने के लिये तथा गर्भाधान करने के लिये शीतकाल को पसन्द करना भी इन के स्वाधीन ही है, इसलिये इस ऋतु में अच्छे वैवा डाक्टर की सलाह से पौष्टिक दवा, पाक अथवा खुराक के खाने से बहुत ही फायदा होता है ।
जायफल, जावित्री, लौंग, बादाम की गिरी और केशर को मिलाकर गर्म किये हुए दूध का पीना भी बहुत फायदा करता है ।
बादाम की कतली वा बादाम की रोटी का खाना वीर्य पुष्टि के लिये बहुत ही फायदेमन्द है ।
इन ऋतुओं में अपथ्य - जुलाब का लेना, एक समय रसोई का खाना, तीखे और तुर्क पदार्थों का अधिक सेवन सोना, ठंढेपानी से नहाना और दिन में सोना, ये सब बातें है, इसलिये इन का त्याग करना चाहिये ।
भोजन करना, बासी
करना, खुली जगह में
इन ऋतुओं में अपथ्य
वह जो ऊपर छ: ओं ऋतुओं का पथ्यापथ्य लिखा गया है वह नीरोग कृतिवालों के लिये समझना चाहिये, किन्तु रोगी का पथ्यापथ्य तो रोग के अनुसार होता है, वह संक्षेप से आगे लिखेंगे ।
पथ्यापथ्य के विषय में यह अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि देश और अपनी प्रकृति को पहचान कर पथ्य का सेवन करना चाहिये तथा अपथ्य का त्याग करना चाहिये, इस विषय में यदि किसी विशेष बात का विवेचन करना हो तो चतुर वैद्य तथा डाक्टरों की सलाह से कर लेना चाहिये, यह विषय बहुत गहन ( कठिन ) है, इस लिये जो इस विद्या के जानकार हों उन की संगति अवश्य करनी चाहिये कि जिस से शरीर की आरोग्यता के नियमों का ठीक २ ज्ञान होने से सदा आरोग्यता बनी रहे तथा समयानुसार दूसरों का भी कुछ उपकर हो सके, वैसे भी बुद्धिमानों की संगति करने से अनेक लाभ ही होते हैं ।
यह चतुर्थ अध्याय का ऋतुचर्यावर्णन नामक सातवां प्रकरण समाप्त हुआ ||
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