Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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शरीर के रस और रुधिर आदि को सुखा डालती है, परन्तु मन्दाग्निवालों को पुष्टिकारक खुराक के खाने से हानि पहुँचती है, क्योंकि ऐसा करने से अग्नि और भी मन्द हो जाती है तथा अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं ।
२-इस ऋतु में मीठे खट्टे और खारी पदार्थ खाने चाहियें, क्योंकि मीठे रस से जब कफ बढ़ता है तब ही वह प्रबल जठराग्नि शरीर का ठीक १ पोषण करती है, मीठे रस के साथ रुचि को पैदा करने के लिये खट्टे और खारी रस भी अवश्य खाने चाहिये।
३-इन तीनों रसों का सेवन अनुक्रम से भी करने का विधान है, क्योंकि ऐसा लिखा है-हेमन्त ऋतु के साठ दिनों में से पहिले बीस दिन तक मीठा रस अधिक खाना चाहिये, बीच के बीस दिनों में खट्टा रस अधिक खाना चाहिये तथा अन्त के बीस दिनों में खारा रस अधिक खाना चाहिये, इसी प्रकार खाते समय मीठे रस का ग्रास पहिले लेना चाहिये, पीछे नींबू, कोकम, दाल, शाक, राइता, कढ़ी और अचार आदि का ग्रास लेना चाहिये, इस के बाद चटनी, पापड़ और खीचिया आदि पदार्थ (अन्त में ) खाने चाहियें, यदि इस क्रम से न खाकर उलट पुलट कर उक्त रस खाये जावें तो हानि होती है, क्योंकि शरद् ऋतु के पित्त का कुछ अंश हेमन्त ऋतु के पहिले पक्षतक में शरीर में रहता है इस लिये पहिले खट्टे और खारे रस के खाने से पित्त कुपित होकर हानि होती है, इस लिये इस का अवश्य स्मरण रखना चाहिये। ४-अच्छे प्रकार पोषण करनेवाली (पुष्टिकारक ) खुराक खानी चाहिये । ५-स्त्रीसेवन, तेल की मालिश, कसरत, पुष्टिकारक दवा, पौष्टिक खुराक, पाक, धूप का सेवन, ऊन आदि का गर्म कपड़ा, अंगीठी (सिगड़ी) से मकान को गर्म रखना आदि बातें इस ऋतु में पथ्य हैं। __ हेमन्त और शिशिर ऋतु का प्रायः एकसा ही वर्ताव है, ये दोनों ऋतुयें वीर्य को सुधारने के लिये बहुत अच्छी हैं, क्योंकि इन ऋतुओं में जो वीर्य और शरीर को पोषण दिया जाता है वह बाकी के आठ महीने तक ताकत रखता है अर्थात् वीर्य पुष्ट रहता है। __ यद्यपि सबहीऋतुओं में आहार और विहार के नियमों का पालन करने से शरीर का सुधार होता है परन्तु यह सब ही जानते हैं कि वीर्य के सुधार के विना शरीर का सुधार कुछ भी नहीं हो सकता है, इस लिये वीर्यका सुधार अवश्य करना चाहिये और वीर्य के सुधारने के लिये शीत ऋतु, शीतल प्रकृति और शीतल देश विशेष अनुकूल होता है, देखो ! ठंढी तासीर ठंढी मौसम और ठंढे देश के वसने वालों का वीर्य अधिक दृढ़ होता है।
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