Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
सिवाय भिन्न २ देशवाले लोगोंको प्रारम्भ से ही जिन पदार्थोंका अभ्यास हो जाता है उनके लिये वे ही पदार्थ पथ्य हो जाते हैं ।
शाकों में - चंदलियेके पत्ते परवल, पालक, वधुआ, पोथी की सूरणकन्द, मेथी के पत्ते, तोरई, भिण्डी और कद्दू आदि पथ्य हैं ।
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दूसरे आवश्यक पदार्थों में- गाय का दूध, गाय का घी, गाय की टी छाछ, मिश्री, अदरख, आँवले, सेंधानमक, मीठा अनार, मुनक्का, मीठी दाख और बादाम, ये भी सब पथ्य पदार्थ हैं ।
दूसरी रीति से पदार्थों की उत्तमता इस प्रकार समझनी चाहिये कि चावलों में लाल, साठी तथा कमोद पथ्य हैं, अनाजों में गेहूँ और जौं, दालों में मूंग और अरहर की दाल, मीठे में मिश्री, पत्तों के शाक में दलिया, फलों के शाक में परवल, कन्दशाक में सूरण, नमकों में सेंधानमक, खटाई में आँवले, दूधों में गाय का दूध, पानी में बरसात का अधर लिया हुआ पानी, फलों में विलायती अनार तथा मीठी दाख मसाले में अदरख, धनिया और जीरा पथ्य हैं, अर्थात् ये सब पदार्थ साधारण प्रकृतिवालों के लिये सब ऋतुओं में और सब देशों में सदा पथ्य हैं, किन्तु किसी २ ही रोग में इन में की कोई २ ही वस्तु पथ्य होती है, जैसे-नये ज्वर में बारह दिन तक घी, और इक्कीस दिन तक दूध कुपथ्य होता है इत्यादि, ये सब बातें पूर्वाचार्यों के बनाये हुए ग्रन्थों से बढ़त हो सकती हैं किन्तु जो लोग अज्ञानता के कारण उन ( पूर्वाचार्यों) के कथन पर ध्यान न देकर निषिद्ध वस्तुओं का सेवन कर बैठते हैं उन को महाकष्ट होता है तथा प्राणान्त भी हो जाता है, देखो ! केवल वातज्वर के पूर्वरूप में घृतपान करना लिखा है परन्तु पूर्णतया निदान कर सकनेवाला वैद्य वर्त्तमान समय में पुण्यवानों को ही मिलता है, साधारण वैद्य रोग का ठीक निदान नहीं कर सकते हैं, प्रायः देखा गया है कि- वातज्वर का पूर्वरूप समझ कर नवीन ज्ववालों को घृत पिलाया गया है और वे बेचारे इस व्यवहारसे पानीझरा और मोझरा जैसे महाभयंकर रोगों में फँस चुके हैं, क्योंकि उक्त रोग ऐसे ही व्यवहार से होते हैं, इसलिये वैद्यों और प्रजा के सामान्य लोगों को चाहिये कि -म से कम मुख्य २ रोगों में तो विहित और निषिद्ध पदार्थों का सदा ध्यान रखें
साधारण लोगों के जानने के लिये उन में से कुछ मुख्य २ बातें यहां सूचित करते हैं:
नये ज्वर में चिकने पदार्थ का खाना, आते हुए पसीने में और ज्वर में ठंढी तथा मलिन हवा का लेना, मैला पानी पीना तथा मलिन खुराक का खाना, मज्वर के सिवाय नये ज्वर में बारह दिन से पहिले जुलाब सम्बन्धी हरड़ आदि दवा वा कुटकी चिरायता आदि कडुई कपैली दवा का देना निषिद्ध है,
१-इस को पूर्व में अलता कहते हैं, यह एक प्रकार का रंग होता है ।
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