Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
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१४ - यथायोग्य समय निकालकर घड़ी दो घड़ी सद्गुणियों की मण्डली में बैठकर निर्दोष बातों को तथा व्याख्यानों को सुनना चाहिये ।
१५ - यह संसार अनित्य है अर्थात् इस के समम्न धनादि पदार्थ क्षणभङ्गुर हैं इत्यादि वैराग्य का विचार करना चाहिये ।
१६ - जिस वतीव से रोग हो, प्रतिष्ठा और धन का नाश हो तथा आगामी में धन की आमद रुक जाये, ऐसे वर्त्तावको कुपथ्य ( हानिकारक ) समझ का छोड़ देना चाहिये, क्योंकि ऐसे ही निषिद्ध वर्त्ता के करने से यह भव और परभव भी बिगड़ता है ।
२७- परनिन्दा तथा देवगुरुद्वेष से सदैव बचना चाहिये ।
१८ - उस व्यवहार को कदापि नहीं करना चाहिये जो दूसरे के लिये हानि करे । १९- देव, गुरु, विद्वान्, माता, पिता तथा धर्म में सदैव भक्ति रखनी चाहिये । २० - यथाशक्य क्रोध, मान, माया और लोभआदि दुर्गुणों से बचना चाहिये ।
यह पथ्यापथ्य का विचार विवेकविलास आदि ग्रन्थों से उद्धृत कर क्षेत्र मात्र में दिखलाया गया है, जो मनुष्य इसपर ध्यान देकर इसी के अनुसार वत्तीय करेगा वह इसभव और परभव में सदा सुखी रहेगा ।
दुर्बल मनुष्य के खाने योग्य खुराक ।
बहुत से मनुष्य देखने में यद्यपि पतले और इकहरी हड्डी के दीखते हैं परन्तु शक्तिमान् होते हैं, तथा बहुत से मनुष्य पुष्ट और स्थूल होकर भी शक्ति न होते हैं, शरीर की प्रशंसा प्रायः सामान्य ( न अनि दुर्बल और न अति स्थूल ) की की गई है, क्योंकि शरीर का जो अत्यन्त स्थूलपन तथा दुर्बलपन है उसे आरोग्यता नहीं समझनी चाहिये, क्योंकि बहुत दुर्बलपन और बहुत स्थूलपन प्रायः ताकती का चिन्ह है और इन दोनों के होने से शरीर बेडौल भी दीखता है, स लिये सब मनुष्यों को उचित है कि योग्य आहार विहार और यथोचित उपायों के द्वारा शरीर को मध्यम दशा में रक्खें, क्योंकि योग्य आहार विहार और रथोचित उपायों के द्वारा दुर्बल मनुष्य भी मोटे ताज़े और पुष्ट हो सकते हैं तथा रबी के बढ़ जाने से स्थूल हुए पुरुष भी पतले हो शकते हैं, अब इस विषय में रक्षेप से कुछ वर्णन किया जाता है:
दुर्बल मनुष्यों की पुष्टि के वास्ते उपाय - दुर्बल मनुष्य को अपनी पुष्टि के वास्ते ये उपाय करने चाहियें कि मिश्री मिला कर थोड़ा २ दूध दिन में कई वार पीना चाहिये, प्रातःकाल तथा सायंकाल में शक्ति के अनुसार दण्ड बैक और मुहर ( मोगरी ) फेरना आदि कसरत कर पाचन शक्तिके अनुकूल परिमित दूध पीना चाहिये, यदि कसरत का निर्वाह न हो सके तो प्रातःकाल तथा सन्ध्या को
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