Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
२५७
छठा प्रकरण। पथ्यापथ्यवर्णन।
पथ्यापथ्य का विवरण । १-खानपान के कुछ पदार्थ ऐसे हैं जो कि नीरोग मनुष्यों के लिये सर्व ऋतुओं
और सब देशों में अनुकूल आते हैं। २-कुछ पदार्थ ऐसे भी हैं जो कि कुछ मनुष्यों के अनुकूल और कुछ मनुष्यों के
प्रतिकूल आते हैं, एवं एक ऋतु में अनुकूल और दूसरी ऋतु में प्रतिकूल
आते हैं, इसी प्रकार एक देशमें अनुकूल और दूसरे देशमें प्रतिकूल होते हैं । ३-कुछ पदार्थ ऐसे भी हैं जो कि-सब प्रकार की प्रकृतिवालों के लिये सब ऋतुओं में और सब देशों में सदा हानि ही करते हैं।
इन तीनों प्रकार के पदार्थों में से प्रथम संख्या में कहे हुए पदार्थ पथ्य (सब के लिये हितकारी ) दसरी संख्या में कहे हए पदार्थ पथ्यापथ्य (हितकर्ता तथा अहितकर्ता अर्थात् किसी के लिये हितकारी और किसी के लिये अहितकारी) और तीसरी संख्या में कहे हुए पदार्थ कुपथ्य अथवा अपथ्य (सब के लिये अहितकारी) कहलाते हैं। __ अब इन (तीनों प्रकार के पदार्थों ) का क्रम से वर्णन पूर्वाचार्यों ने लेख तथा अपने अनुभव के विचारों के अनुसार संक्षेप से करते हैं:
पथ्यपदार्थ। अनाजों में-चावल, गेहूँ, जौं, मूंग, अरहर (तूर), चना, मोठ, मसूर और मटर, ये सब साधारणतया सब के हितकारी हैं अर्थात् ये सब सदा खाये जावें तो किसी प्रकार की भी हानि नहीं करते हैं, हां इस बात का स्मरण अवश्य रखना चाहिये कि-इन सब अनाजों में जुदे २ गुण हैं इस लिये इन के गुणों का और अपनी प्रकृति का विचार कर इन का यथायोग्य उपयोग करना चाहिये। __ चनों को यहां पर यद्यपि पथ्य पदार्थों में गिनाया है, तथापि इन के अधिक खाने से पेट में वायु भर कर पेट फूल जाता है इस लिये इन को कम खाना चाहिये, चावल एक वर्ष के पुराने अच्छे होते हैं, अरहर (तूर ) की दाल को घी डाल कर खाने से बिलकुल वायु को नहीं करती है, मूंग यद्यपि वायु को करती है, परन्तु उसकी दालका पानी त्रिदोषहर और भयंकर रोगमें भी पथ्य है, इसके
१-कोई पदार्थ विशेष किसीके लिये कुछ हानिकारक हो उसकी गणना इसमें नहीं है ।
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