Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
चित्त प्रसन्न रहता, बुद्धि तीव्र होती तथा मस्तक बलयुक्त बना रहता है किजिस से वह शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक कार्यों को अच्छे प्रकार से कर सुखों को भोग अपने आत्मा का कल्याण कर सकता है, इस लिये ऐसे उत्तम पदार्थ को खो देना मानो मनुष्यजीवन के उद्देश्य का ही सत्यानाश करना है, क्योंकि-आरोग्यता से रहित पुरुष कदापि अपने जीवन की सफलता को प्राप्त नहीं कर सकता है, जीवन की सफलता का प्राप्त करना तो दूर रहा किन्न जब आरोग्यता में अन्तर पड़ जाता है तो मनुष्य को अपने जीवन के दिन काटना भी अत्यन्त कठिन हो जाता है, सत्य तो यह है कि-एक मनुष्य सर्व गुणों से युक्त तथा अनुकूल पुत्र, कलत्र और समृद्धि आदि से युक्त होने पर भी स्वास्थ्यरहित होनेसे जैसा दुःखित होता है-दूसरा मनुष्य उक्त सर्व साधनों से रहित होने पर भी नीरोगता युक्त होने पर वैसा दुःखित नहीं होता है, यद्यपि यह बात सत्य है कि-आरोग्यता की कदर नीरोग मनुष्य नहीं कर सकता है किन्तु आरोग्यता की कदर को तो ठीक रीति से रोगी ही जानसकता है, परन्तु थापि नीरोग मनुष्य को भी अपने कुटुम्ब में माता, पिता, भाई, बेटा, बेटी तथा बहिन आदिके बीमार पड़नेपर नीरोगता का सुख और अनारोग्यता का दुःख विदित हो सकता है, देखो । कुटुम्ब में किसी के बीमार पड़ने पर नीरोग मनुष्य के भी हृदय में कैसी घोर चिन्ता उत्पन्न होती है, उसको इधर उधर वैद्य वा डाक्टरों के पास जाना पड़ता है, जीविका में हर्ज पड़ता है तथा दवा द रू में उपार्जित धन का नाश होता है, यदि विद्याहीन यमदूत के सदृश मूग वैद्य मिल जावे तो कुटुम्बी के नाश के द्वारा तद्वियोगजन्य ( उसके वियोग से उत्पन्न) असह्य दुःखभी आकर उपस्थित होता है, फिर देखिये । यदि घर के काम काज की सँभालनेवाली माता अथवा स्त्री आदि बीमार पड़ जावे तो बाल बच्चों की सँभाल और रसोई आदि कामों में जो २ हानियां पहुँचती है वे किसी गृहस्थ से छिपी नहीं है, फिर देखो! यदि दैवयोग से घर का कमानेवाला ही बीमार हो जावे तो कहिये उस घर की क्या दशा होती है, एवं यदि प्रतिदिन कमा कर घर का खर्च चलानेवाला पुरुष बीमार पड़ जावे तो उस घर की क्या दशा होती है, इसपर भी यदि दुर्दैव वश उस पुरुष को ऋण भी उधार न मिल सके तो कहिये बीमारी के समय उस घर की विपत्ति का क्या ठिकाना है, इस लिये प्रिय मित्रो ! अनुभवी जनों का यह कथन बिलकुल ही सत्य है कि-"राजमहल के अन्दर रहनेवाला राजा भी यदि रोगी हो तो उसको दुःखी और झोपड़ी में रहनेवाला एक गरीब किसान भी यदि नीरोग हो तो उसको सुखी समझना चाहिये," तात्पर्य यही है कि-आरोग्यता सब सुग्बों का और अनारोग्यता सब दुःखों का परम आश्रय है, सत्य तो यह है कि-गेगा. वस्था में मनुष्य को जितनी तकलीफ उठानी पड़ती है. उसे उस का हृदय ही जानता है, इस पर भी इस रोगावस्था में एक अतिदारुण विपत्ति का और भी
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