Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
चतुर्थ अध्याय ।
२३५
परदेश की लेकर सब लोग निर्वाह करने लगे, देखो ! जब मोरस की खांड़ प्रथम यहां थोड़ी २ आने लगी तब उस को देशी चीनी से स्वच्छ और सस्ती देख कर लोग उस पर मोहित होने लगे, आखिरकार समस्त देश उस से व्याप्त हो गया और देशी शक्कर क्रम २ से नामशेष होती गई, नतीजा यह हुआ कि अब केवल मात्र के लिये ही उस का प्रचार होता है ।
इस बात को प्रायः सब ही जान सकते हैं कि-विलायती खांड़ ईख के रस से नहीं बनती है, क्योंकि वहां ईख की खेती ही नहीं है किन्तु वीट नामक कन्द और जुवार की जाति के टटेलों से अथवा इसी प्रकार के अन्य पदार्थों में से उन का सत्व निकाल कर वहां खांड़ बनाई जाती है, उस को साफ करने की रीति "एन्साक्लोपेडिया ब्रिटानिका " के ६२७ पृष्ठ में इस प्रकार लिखी है
----
एक सौ चालीस या एक सौ अड़सठ मन चीनी लोहे की एक बड़ी ढंग में गलाई जाती है, चीनी गलाने के लिये डेग में एक यन्त्र लगा रहता है, साही गर्म भाफ के कुछ पाइप भी डेग में लगे रहते हैं, जिस से निरन्तर गर्म पानी डेग में गिरता है, यह रस का शीरा नियमित दर्जे तक औटाया जाता है, जब बहुत मैली चीनी साफ की जाती है तब वह खून से साफ होती है, गर्म शीरा रुई और सन की जालीदार थैलियों से छाना जाता है, ये थैलियां बीच २ से में साफ की जाती हैं, फिर वह शीरा जानवरों की हड्डियों की राख की ३० ४० पुटतक गहरी तह से छन कर नीचे रक्खे हुए वर्त्तन में आता है, इस तरह से शीरे का रंग बहुत साफ और सफेद हो जाता है, ऊपर लिखे अनुसार शीरा बनकर तथा साफ होने के अनन्तर उस की दूसरी वार सफाई इस तरह से की जाती है की एक चतुष्कोण ( चौकोनी ) तांबे की टेग में कुछ चूने के पानी के साथ चीनी रक्खी जाती है (जिस में थोड़ा सा बैल का खून डाला जाता है ) और प्रति सैकड़े में ५ से २० तक हड्डी के कोयलों का चूरा डाला जाता है इत्या है, देखो ! यह सब विषय अंग्रेजों ने अपनी बनाई हुई किताबों में लिखा है, बहुत से डाक्टर लोग लिखते हैं कि इस चीनी के खाने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, इस पर यदि कोई पुरुष यह शंका करे कि विलायत के लोग इसी चीनी को खाते हैं फिर उन को कोई बीमारी क्यों नहीं होती है ? और वहां प्लेग जैसे भयंकर रोग क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ? तो इस का उत्तर यह है कि वर्तमान समय में विलायत के लोग संसारभर में सब से अधिक विज्ञानवेत्ता और अधिकतर विद्वान् हैं ( यह बात प्रायः सव को विदित ही है ), वे लोग इस शक्कर को हते भी नहीं है किन्तु वहां के लोगों के लिये तो इतनी उमदा और सफाई के साथ चीनी बनाई जाती है कि उसका यहां एक दानाभी नहीं आता है, क्योंकि वह एक प्रकार की मिश्री होती है और वहां पर वह इतनी महँगी विकती है कि उस के यहां आने में गुञ्जाइश ही नहीं है, इस के सिवाय यह बात भी है कि यदि वहां के लोग इस चीनी का सेवन भी करें तो
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com