Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जनसम्प्रदायशिक्षा।
विलास, पविन्दु, चन्दनादि, लाक्षादि, शतपक्क और सहस्रपक्क आदि अनेक प्रकार के तेल इसी तिल के तेल से बनाये जाते हैं जो प्रायः अनेक रोगों को नष्ट करते हैं, तथा बहुत ही गुणकारक होते हैं। ___ यह तैल पिचकारी लगाने के और पीने के काम में भी आता है, तथा गरीब लोग इस को खाने तलने और बघारने आदि अनेक कार्यों में वर्त्तते हैं, यह कान तथा नाक में भी डाला जाता है।
परन्तु इस में थे अवगुण हैं कि-यह सन्धियों को ढीला कर धातुओं को नर्म कर डालता है, रक्तपित्त रोग को उत्पन्न करता है किन्तु शरीर में मर्दन करने से फायदा करता है, इस के सिवाय शरीर, बाल, चमड़ी तथा आंखों के लिये भी फायदेमन्द है, परन्तु तिली का या सरसों का खाली तेल खाने से इन चाने को (शरीर आदि को) हानि पहुंचाता है, हेमन्त और शिशिर ऋतु में वायु की प्रकृतिवाले को यह सदा पथ्य है।
सरसों का तेल-दीपन तथा पाक में कटु है, इस का रस हलका है, लेखन, स्पर्श और वीर्य में उष्ण, तीक्ष्ण, पित्त और रुधिरको दूपित करनेवाला, कफ, मेदा, वादी, बवासीर, शिरःपीड़ा, कान के रोग, खुजली, कोढ़, कृमि, श्वेत कुष्ठ और दुष्ट कृमि को नष्ट करता है।
राई का तेल-काली और लाल राई के तेल में भी सरसों के तेल के समान ही गुण हैं किन्तु इस में केवल इतनी विशेषता है कि-यह मूत्रकृच्छ्र को उत्पन्न करता है।
तुवरीका तेल-तुबरी अर्थात् तोरई के बीजों का तेल-तीक्ष्ण, उष्ण, हलका, ग्राही, कफ और रुधिर का नाशक तथा अग्निकर्ता है, एवं विष, खुजली, कोढ़, चकते और कृमि को नष्ट करता है, मेददोष और व्रण की सूजन में भी फायदेमन्द है।
अलसी का तेल-अग्निकर्ता, स्निग्ध, उष्ण, कफपित्तकारक, कटुपाकी नेत्रों को अहित, बलका, वायुहर्ता, भारी, मलकारक, रस में स्वादिष्ठ, ग्राही, त्वचा के दोषों का नाशक तथा गाढ़ा है, इसे बस्तिकर्म, तैलपान, मालिस, नस्य, कर्णपूरण और अनुपान विधि में वायु की शान्ति के लिये देना चाहिये।
कुसुम्भ का तेल-कसूम के बीजों का तेल-खट्टा, उष्ण, भारी, दाहकारक, नेत्रों को अहित, बलकारी, रक्तपित्तकारक तथा कफकारी है।
खसखस का तेल-बलकर्ता, वृष्य; भारी, वातकफहरणकर्ता, शीतल तथा रस और पाक में स्वादिष्ट है।
अण्डी का तेल-तीक्ष्ण, उष्ण, दीपन, गिलगिला, भारी, वृष्य, त्वचा को सुधारनेवाला, अवस्था का स्थापक, मेधाकारक, कान्तिप्रद, बलवर्धक. कपैले
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