Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
२३३ दुर्बल शरीरवाला, शोष रोगी, जिस के जखम हो वा चोट लगी हो ववासीर, श्वास और मूर्छा का रोगी, मार्ग में चलने से थका हुआ, जिस ने बहुत परिश्रम का काम किया हो, जो गिरने से व्याकुल हो, जिस को किसी ने किसी प्रकार का उपालम्भ (उलाहना वा ताना आदि) दिया हो इस से उस के मन में चिन्ता हो, जिस को किसी प्रकार का नशा या विष चढ़ा हो, जिस को मूत्रकृच्छ्र वा पथरी का रोग हो, इन मनुष्यों के लिये पुराना गुड़ अति लाभदायक है, इस प्रकार जीर्णज्वर से श्रीण तथा विषम ज्वरवाले पुरुष को पीपल हरड़ सोंठ और अजमोद, इन चारों के साथ अथवा इन में से किसी एक के साथ पुराने गुड़ को देने से उक्त दोनों प्रकार के ज्वर मिट जाते हैं, रक्तपित्त और दाह के रोगी को इस का शर्बत कर पिलाना चाहिये, क्षय और रक्तविकार में गिलोय को घोट कर उस के रस के साथ पुराना गुड़ मिला कर देने से बहुत लाभ पहुँचाताहै।
पास्तव में तो पुराना गुड़ उपर लिखे रोगों में तथा इन के सिवाय दूसरे भी बहुत से रोगों में बड़ा ही गुणकारी है और अन्य ओषधियों के साथ इस का अनुपान जल्दी ही असर करता है।
गुड़ के समान एक वर्ष के पीछे से तीन वर्पतक का पुराना शहद भी गुणकारी समझना चाहिये।
खांड़-पित्तनाश टंढी और बल देनेवाली है, बनारसी खांड़ आंखों के लिये बहुत फायदेमन्द और वीर्यवर्धक है, खांड़ कफ को करती है इसलिये कफ के रोगो में, रसविकार से उत्पन्न हुए शोथ में, ज्वर में और आमवात आदि कई रोगों में हानि करती है, खाने के उपयोग में खांड़ को न लेकर बूरा को लेना चाहिये।
मिश्री और कन्द-नेत्रों को हितकारी, निग्ध, धातुवर्धक, मुखप्रिय, मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक, बलकारक, सारक (दस्तावर), इन्द्रियों को तृप्त कर्ता, हल; और तृषानाशक हैं, एवं क्षत, रक्तपित्त, मोह, मूर्छा, कफ, वात, पित्त, दाह और शोष को मिटाते हैं।
ये दोनों पदार्थ बहुत ही साफ किये जाते हैं अर्थात् इन में मैल बिलकुल नहीं रहता है इस लिये समझदार लोगों को दूध आदि पदार्थों में सदा इन्हीं का उपयोग करना चाहिये। ___ यद्यपि कालपी की मिश्री को लोग अच्छी बतलाया करते हैं परन्तु मरुस्थल देश के बीकानेर नगर में हलवाई लोग अति उज्ज्वल (उजली, साफ) मिश्री का कूँजा बनाते हैं इस लिये हमारी समझ में ऐसी मिश्री अन्यत्र कहीं भी नहीं बनती है।
विशेष वक्तव्य-प्रिय मित्रो ! पूर्वकाल में शर्करा (चीनी) इस देश में इतनी बहुतायत से बनती थी कि भारतवासी लोग उस का मनमाना उपयोग
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