Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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से स्तप (थम्भ या छतरी) करा देनी चाहिये, यही जैनियों की परम्परा है, यह परम्परा बीकानेर नगर में प्रायः सब ही हिन्दुओं में भी देखी जाती है और विचार कर देखा जाये तो यह प्रथा बहुत ही उत्तम है, क्योंकि वे अस्थि और राख आदि पदार्थ ऐसा करने से प्राणियों को कुछ भी हानि नहीं पहुंचा सकते हैं, ज्ञात होता है कि जब से भरतचक्री ने कैलास पर्वत पर अपने सौ भाइयों की राख और हड्डियो पर स्तूप करवाये थे तब ही से यह उत्तम प्रथा चली है।
कुगका पानी-पहिले कह चुके हैं कि-पानी का खारा और मीठा होना आदि पृथिवी की तासीर पर ही निर्भर है इसलिये पृथिवी की तासीर का निश्चय कर के उत्तम तासीरवाली पृथिवी पर स्थित जल को उपयोग में लाना चाहिये, यह भी स्मरण रहे कि-गहरे कुँए का पानी छीलर ( कम गहरे ) कुँए के जल की अपेक्षा अच्छा होता है । जब कुँए के आस पास की पृथिवी पोली होती है और उस में कपड़े धोने से उन ( कपड़ों) से छूटे हुए मैल का पानी स्नान का पानी और बरसार का गन्दा पानी कुँए में भरता है (प्रविष्ट होता है) तो उस कुँए का जल विगड़ जाता है, परन्तु यदि कुंआ गहरा होता है अर्थात् साठ पुरस का होता है तो उस कुए के जल तक उस मैले पानी का पहुँचना सम्भव नहीं होता है।
इसी प्रकार से जिन कुंओं पर वृक्षों के झुण्ड लगे रहते हैं वा झुमा करते हैं तो उन (कुँओं) के जल में उन वृक्षों के पत्ते गिरते रहते हैं, तथा वृक्षों की आइ रहने से सूर्य की गर्मी भी जलतक नहीं पहुँच सकती है, ऐसे कुँओं का जल प्रयः बिगड़ जाता है। __ इस के सिवाय-जिन कुंओं में से हमेशा पानी नहीं निकाला जाता है उन का पानी भी बन्द (बँधा) रहने से खराब हो जाता है अर्थात् पीने के लायक नहीं रहता है, इसलिये जो कुंआ मज़बूत बँधा हुआ हो, नहाने धोने के पानी का निकास जिस से दूर जाता हो, जिस के आस पास वृक्ष या मैलापन न हो और जिस को गार (कीचड़) वार २ निकाली जाती हो उस कुए का, आस पास की पृथिवी का मेला कचरा जिस के जल में न जाता हो उस का, बहुत गहरे कुँए का, तथा खारीपनसे रहित पृथिवी के कुँए का पानी साफ और गुणकारी होता है।
कुण्ड का पानी-कुण्ड का पानी बरसात के पानी के समान गुणवाला होता है, परन्तु जिस छत से नल के द्वारा आकाशी पानी उस कुण्ड में लाया जाता है उस छत पर धूल, कचरा, कुत्ते बिल्ली आदि जानवरों की वीट तथा पक्षियों की विष्टा आदि मलिन पदार्थ नहीं रहने चाहियें, क्योंकि-इन मलिन पदार्थों से मिश्रित होकर जो पानी कुण्ड में जायगा वह विकारयुक्त और खराब होगा, तथा उस का पीना अति हानिकारक होगा, इस लिये मैल और कचरे
१-ॐ । बीकानेर में साठ पुरस के गहरे कुँए हैं, इसलिये उन का जल निहायत उमदा और साफ है ।
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