Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
वर्ग | घृत
घी के सामान्य गुण - घी रसायन, मधुर, नेत्रों को हितकर, अग्निदीपक, शीतवीर्यवाला, बुद्धिवर्धक, जीवनदाता, शरीर को कोमल करनेवाला,
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कान्ति और वीर्य को बढानेवाला, मलनिःसारक ( मल को निकालनेवाला ), भोजन में मिठास देनेवाला, वायुवाले पदार्थों के साथ खाने से उन ( पढ़ार्थों ) वायु को मिटानेवाला, गुमड़ों को मिटानेवाला, जखमी को बल देने वाला, कण्ठ तथा स्वर का शोधक ( शुद्ध करनेवाला ), मेद और कफ को बढ़ानेवाला तथा अग्निदग्ध ( आग से जले हुए) को लाभदायक है, वातरक्त, अजीर्ण, नसा, शूल, गोला, दाह, शोध ( सूजन ), क्षय और कर्ण ( कान ) तथा मस्तक के रक्तविकार आदि रोगों में फायदेमन्द है, परन्तु साम ज्वर आम के सहित बुखार) में और सन्निपात के ज्वर में कुपथ्य ( हानिकारक ) है, सादे ज्वर में बारह दिन वीतने के बाद कुपथ्य नहीं है, बालक और वृद्ध के लिये प्रतिकूल है, बढ़ा हुआ क्षय रोग, कफका रोग, आमवातका रोग ज्वर, हैजा, मतबन्ध, बहुत मदिरा के पीने से उत्पन्न हुआ मदात्यय रोग और मन्दाग्नि, इन रोगों में घृत हानि करता है, साधारण मनुष्यों के प्रतिदिन के भोजन में, थकावट में, क्षीणता में, पाण्डुरोग में और आंख के रोग में ताजा घी फायदेमन्द है, मूर्छा, कोढ़, विष, उन्माद, वादी तथा तिमिर रोग में एक वर्ष का पुराना घी फायदेमन्द है ।
श्वास रोग वाले को बकरी का पुराना घी अधिक फायदेमन्द है ।
tr और भैंस आदि के दूध के गुणों में जो जो अन्तर कह चुके हैं वही अन्तर उनके घी में भी समझ लेना चाहिये ।
सब तरह के मल्हमों में पुराना घी गुण करता है किन्तु केवल पुराने घी में भी मल्हम 'के सब गुण हैं ।
घी को शास्त्रकारों ने रत्न कहा है किन्तु विचार कर देखा जावे तो यह रत्न से भी अधिक गुणकारी है, परन्तु वर्त्तमान समय में शुद्ध और उत्तम घी भाग्यवानों के सिवाय साधारण पुरुषों को मिलना कठिन सा हो गया है, इस का कारण केवल उपकारी गाय भैंस आदि पशुओं की न्यूनता ही है ।
गाय का मक्खन-नवीन निकाला हुआ गाय का मक्खन हितकारी है, बलवर्धक है, रंग को सुधारता है, अग्नि का दीपन करता है, तथा दस्त को रोकता हैं, वायु, पित्त, रक्तविकार, क्षय, हरस, अर्दित वायु तथा खांसी के रोग में फायदा करता है, प्रातःकाल मिश्री के साथ खाने से यह विशेष कर शिर और नेत्रों को लाभ देता है तथा बालकों के लिये तो यह अमृतरूप है ।
१-घी को तपा कर तथा छान कर खाने के उपयोग में लाना चाहिये ॥ २- इस के सिवाय जिस जिस पशु के दूध में जो जो गुण कहे हैं वेही गुण उस पशु के घी में भी जानने चाहिये ॥
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