Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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परीक्षा होकर यदि संग्रहणी का रोग सिद्ध हो जावे तो छाछ को पीना चाहिये, परन्तु यदि अम्लपित्त रोग का निश्चय हो तो छाछ को कदापि नहीं पीना चाहिये, क्योंकि संग्रहणी रोग में छाछ अमृत के तुल्य और अम्लपित्त रोग में विष के तुल्य असर करती है।
तकसेवननिषेध-जिस के चोट लगी हो उसे, घाववाले को, मल से उत्पन हुए शोथ रोगवाले को, श्वास के रोगी को, जिस का शरीर सूख कर दुर्बल हो गया हो उस को, मूर्छा भ्रम उन्माद और प्यास के रोगी को, रक्तपित्तवाले को, राजयक्ष्मा तथा उरःक्षत के रोगी को, तरुण ज्वर और सन्निपात ज्वरवाले को तथा वैशाख जेठ आश्विन और कार्तिक मास में छाछ नहीं पीनी चाहिये, क्योंकि उक्त रोगों में छाछ के पीने से दूसरे अनेक रोगों के उत्पन्न होने का संभव होता है, तथा उक्त मासों में भी छाछ के पीने से रोगोत्पत्ति की सम्भावना रहती है।
फलवर्ग। इस देश के निवासी लोग जिन जिन फलों का उपयोग करते हैं उन सब में मुख्य आम्र (आम) का फल है, तथा यह फल अन्य फलों की अपेक्षा प्रायः हितकारी भी है, इस के सिवाय और भी बहुत से फल हैं जो कि अनेक देशों में ऋतु के अनुसार उत्पन्न होते तथा लोगों के उपयोग में आते हैं परन्तु फलों के उपयोग के विषय में भी हमारे बहुत से प्रिय बन्धु उन के (फलों के ) गुण और अवगुण से बिलकुल अनभिज्ञ हैं, इस लिये कुछ आवश्यक उपयोग में आनेवाले फलों के गुणों को लिखते हैं:
कच्चेआम-गर्म, खट्टे, रुचिकर तथा ग्राही हैं, पित्त, वायु, कफ तथा खून में विकार उत्पन्न करते हैं, परन्तु कण्ठ के रोग, वायु के प्रमेह, योनिदोष, व्रण (धाव) और अतीसार में लाभदायक (फायदेमन्द) हैं।
पके आम-वीर्यवर्धक, कान्तिकारक, तृप्तिकारक तथा मांस और बल को बढ़ानेवाले हैं, कुछ कफकारी हैं इस लिये इन के रस में थोड़ी सी सोंठ डालकर उपयोग में लाना चाहिये।
आमों की बहुत सी जातियां हैं तथा जाति भेद से इनके स्वाद और गुणों में
१-यह तक का संक्षेप से वर्णन किया गया, इस का विशेष वर्णन दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में देखना चाहिये ॥ २ इस के संस्कृत में आम्र, रसाल, सहकार, अतिसौरभ और कामांग आदि अनेक नाम हैं, इसे भाषा में आम कहते हैं, तथा मारवाड़ में आंबा कहते हैं ॥ ३-इन को मारवाड़ में केरी अथवा कची केरी कहते है ॥ ४-मुर्शिदाबाद में एक प्रकार के कचे मीठे आम होते हैं तथा इन को वहांवाले कच्चमीठे आम कहते हैं । बनारस में एक प्रकार का लगडा आम बहुत उत्तम होता है तथा फर्रुखाबाद में आम अनेक प्रकार के होते हैं जैसे-बम्बई, मालदह, टिकार, तौधा, बादशाहपसन्द, बेलवम्बई, अनन्नासी और गोपालभोग आदि, यद्यपि ये खाने में सब ही उत्तम होते हैं परन्तु टिकारी और गोपालभोग ये दो प्रकार के आम तो अति प्रशंसनीय होते हैं, उक्त नगर में आम बहुतायत से उत्पन्न होता है अतः सस्ता भी बहुत मिलता है ।
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