Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा। है, वैद्य लोग वीमार को इस के खाने का निषेध नहीं करते हैं, यह मीठी, तृप्ति कारक, नेत्रों को हितकारी, टंढी, भ्रमनाशक, सारक (दस्तावर) तथा पुष्टिकारक है, रक्तविकार, दाह, शोष, मूर्छा, ज्वर, श्वास, खांसी, मद्य पीने से उत्पन्न हुए रोग, वमन, शोथ और वातरक्त आदि रोगों में फायदेमन्द है।
नींब-नींबू खट्टे और मीठे दो प्रकार के होते हैं-इन में से मीठा नींबू पूर्व में बहुत होता है, जिस में बड़े को चकोतरा कहते हैं, एफ्रीका देशके जंगबहार सहर में भी मीठे नींबू होते हैं उन को वहांवाले मचूंगा कहते हैं, वहां के वे मीठे नींबू बहुत ही मीठे होते हैं, जिनके सामने नागपुर के सन्तरे भी कुछ नहीं हैं, इन के अधिक मीठे गुण के कारण ही डाक्टर लोग पित्तज्वर में वहां बहुत देते हैं, फलों में मीटे नींबू की ही गिनती है किन्तु खट्टे नींबू की नहीं है, क्योंकि खट्टे नींबू को वैसे (केवल) कोई नहीं खाता है किन्तु शाक और दाल आदि में इस का रस डाल कर खाया जाता है, तथा डाक्टर लोग सूजन में मसूड़े के दर्द में तथा मुख से खून गिरने में इसे चुसाया करते हैं तथा इस की सिकञ्जिवी को भी जल में डालकर पिलाते हैं, इस के सिवाय यह अचार और चटनी आदि के भी काम में आता है।
नींबू में बहुत से गुण हैं परन्तु इस के गुणों को लोग बहुत ही कम जानते हैं, अन्य पदार्थों के साथ संयोग कर खाने से यह (खट्टा नींबू) बहुत फायदा करता है।
मीठा नींबू-खादु, मीठा, तृप्तिकर्ता, अतिरुचिकारक और हलका है, कफ, वायु, वमन, खांसी, कण्ठरोग, क्षय, पित्त, शूल, त्रिदोष, मलस्तम्भ ( मलका रुकना), हैज़ा, आमवात, गुल्म (गोला), कृमि और उदरस्थ कीड़ों का नाशक है, पेट के जकड़ जानेपर, दस्त बंद होकर बद्ध गुदोदर होने पर, खाने पीनेकी अरुचि होनेपर, पेट में वायु तथा शूल का रोग होने पर, शरीर में किसी प्रकार के विष के चढ़ जाने पर तथा मूछी होने पर नींबू बहुत फायदा करता है ।
बहुत से लोग नींबू के खट्टेपन से डर कर उस को काम में नहीं लाते हैं परन्तु यह अज्ञानता की बात है, क्योंकि नींबू बहुत गुणकारक पदार्थ है, उस का सेवन खट्टेपन से डर कर न करना बहुत भूल की बात है, देखो ! ज्वर जैसे तीव्ररोग में भी युक्ति से सेवन करने से यह कुछ भी हानि नहीं करता है किन्तु फायदा ही करता है ।
नींबू की चार फांकें कर के एक फांक में सोंठ और सेंधानमक, दूसरी में काली मिर्च, तीसरी में मिश्री और चौथी फांक में डीका माली भर कर चुसाने से जी मचलाना, वमन, वदहज़मी और ज्वर आदि रोग मिट जाते हैं, यदि प्रातःकाल में सदा गर्म पानी में एक नींबू का रस डालकर पीने का अभ्यास किया जाये तो आरोग्यता बनी रहती है तथा उस में बूरा या मिश्री मिला कर पीने से यकृत् अर्थात् लीवर भी अच्छा बना रहता है।
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