Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय।
२२१ दही के मित्र-नमक, खार, घी, शक्कर, बूरा, मिश्री, शहद, जीरा, काली मिर्च, आँवले, ये सब दही के मित्र हैं इस लिये इन में से किसी चीज के साथ दही को खाना उचित है, हां इस विषय में यह अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि दोष तथा प्रकृति को विचार कर इन वस्तुओं का योग करना चाहिये, इन वस्तुओं के योग का कुछ वर्णन भी करते हैं-घी के साथ दही वायु को हरता है, आंवले के पाथ कफ को हरता है, शहद के साथ पाचनशक्ति को बढ़ाता है परन्तु ऐसा करने से कुछ बिगाड़ भी करता है, मिश्री बूरा और कंद के साथ दाह, खून, पित्त तथा प्यास को मिटाता है, गुड़ के साथ ताकत को देता है, वायु को दूर करता है, तृप्ति करता है, नमक जीरा और जल डाल कर खाने से विशेष हानि नहीं करता है परन्तु जिन रोगों में दही का खाना मना है उन रोंगों में तो नमक जीरा और जल मिला कर भी खाने से हानि ही करता है।
तक्रवर्ग। छांछ की जाति और गुण निम्न लिखित हैं:
2-घोल-बिना पानी डाले तथा दही की थर (मलाई) विना निकाले जो विलोया जावे उसे घोल कहते हैं, इस में मीठा डाल कर खाने से यह कच्चे आम के रस के समान गुण करता है।
२-मथित-थर निकालकर जो विलोया जावे उसे मथित कहते हैं, यह वायु पित्त और कफ का हरनेवाला तथा हृद्य (हृदय को प्यारा लगनेवाला) है।
३-उदश्वित्-आधा दही तथा आधा जल डाल कर जो विलोया जावे उसे उदश्वित् कहते हैं, यह कफ करता है, ताकत को बढ़ाता हैं और आम को मिटाता है।
४-छछिका (छाछ)—जिस में पानी अधिक डाला जावे तथा विलो कर जिस का मक्खन बिलकुल निकाल लिया जावे उसे छछिका या छाछ कहते हैं, यह हलकी है, पित्त, थकावट और प्यास को मिटाती है, वातनाशक तथा कफ को करनेवाली है, नमक डाल कर इस का उपयोग करने से यह अग्नि को प्रदीप्त करती है तथा कफ को कम करती है।
५-तक-दही के सेर भर परिमाण में पाव भर पानी डाल कर जो विलोया जावे उसे तक कहते हैं, यह दस्त को रोकता है, पचने के समय मीठा है इसलिये पित्त को नहीं करता है, कुछ खट्टा होने से यह उष्णवीर्य है तथा रूक्ष होने से कफ को नष्ट करता है, योगचिन्तामणि तथा श्रीआयुर्ज्ञानार्णव महासंहिता में श्री हेमचन्द्राचार्य ने लिखा है कि-तक का यथायोग्य सेवन करनेवाला पुरुष कभी
१-परन्तु स्मरण रहे कि-बहुत गर्म करके दही को खाना विष के समान असर करता है ।। २-यह दही का संक्षेप से वर्णन किया गया, इस का विशेष वर्णन दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में देख लेना चाहिये ॥ ३-इसे छाछ, मठा, मट्ठा तथा तक भी कहते हैं ॥ ४-अधिक पानी डाली हुई, कम पानी डाली हुई तथा विना पानी की छाछ के गुणों में अन्तर होता है ।।
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