Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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नैनसम्प्रदायशिक्षा।
रहते हों, क्योंकि-यह तो हम सब लोग प्रत्यक्ष ही देखते हैं कि-बहत से गृहस्थ लोग थोड़ा खानेवाले हैं और वे नीरोग देखे जाते हैं तथा बहुत से अधिक खुराक खानेवाले हैं और वे रोगी देखे जाते हैं, इसलिये इस का सा पान्य नियम यही है कि-शरीर के कद और अंम के परिमाण में खुराकका भी परिमाण होना चाहिये, देखो! बड़े एञ्जिन में बड़ा वायलर ( Bailer ) होता है और वह विशेष कोयला खाता है तथा छोटे एक्षिन में छोटा वायलर होता है और वह कम कोयला लेता है, परन्तु चलते दोनों ही हैं और दोनों ही अपना २ काम कर सकते हैं, सिर्फ शक्ति ( Power ) न्यूनाधिक होती है, बस यही नियम मनुष्यों में भी घट सकता है।
खुराक की मात्रा प्रकृतिपर भी निर्भर होती है, देखो! समान अवस्था, नमान बांधे ( शरीर का ढांचा) तथा समान कदके भी दो मनुष्योंमेंसे एककी प्रकृति जन्मसे कफकी होनेसे वह अधिक खुराक नहीं खा सकता है और दूसरेकी प्रकृति पित्त की होने से वह अधिक खासकता है। । प्रायः देखा जाता है कि-अल्पाहारी लोग अधिकाहारी की निन्दा करते हैं और अधिकाहारी भी अल्पहारी की हंसी किया करते हैं परन्तु यह ( ऐसा करना) दोनों की भूल है, क्योंकि-दृढ़ और कदावर ( बड़े कदवाला) शरीर, प्रबल जठराग्नि तथा पुष्कल आहार, ये सब पूर्व किये हुए मुक्त तथा पुण्य के चिह्न हैं और छोटा शरीर, मन्द अग्नि तथा नाजुक (अप) आहार, ये सब पूर्व किये हुए अपकृत्य तथा पाप के चिह्न हैं, अल्पाहारी नाजुक लोग अधिकाहारी की निन्दा तो चाहै भले ही करें परन्तु थोड़ा खाना और पाजुक बनना यह कुछ मरदुमी (पुरुषत्व ) का काम नहीं है, अब दूसरी तरफ खो ! यदि अधिकाहारी लोग अपना शरीर बढ़ा कर श्रमरहित होकर हाथपर हाथ रक्खे बैठे रहें तो वेशक वे लोग निन्दा के ही पात्र हो सकते हैं। __ शरीर तथा मनोभाग के प्राचीन परमाणुओं की हानि होने पर जो खुराक लेने की इच्छा होती है उसे क्षुधा ( भूख ) कहते हैं, इस लिये भूग्य के लगने पर उसी के परिमाण से प्रत्येक मनुष्य को खुराक लेनी चाहिये, क्योंकि- ख से कम खुराक लेने से यथायोग्य पोषण नहीं मिलता है और भूख से अधिक खुराक लेनेसे उस का यथायोग्य पाचन नहीं होता है और ऐसा होने से उक्त दोनों कारणों से शरीर में नाना प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
१-देखो ! समान क.वाले भी दो पुरुषों में से श्रम करनेवाला अधिक खुराक खा सकता है ॥ २-इस वर्ग में आलसी तथा भिक्षुकों का भी समावेश हो सकता , क्योंकि-ग कर खाना उन्ही को शोभा देता है, जो संसार की ममता का त्याग कर परमे धर की भक्ति में ही लीन हैं (इस लिये साधु तथा परमहंस आदि आत्मार्थियों को भीख मरनेवाला नहीं समझना चाहिये) किन्तु जो संसार के मोहजाल में फंसे हुए हैं तथा शरीर से हष्ट पष्ट हैं और परिश्रम न हो सकने के कारण भीख मांगकर खाते हैं उन को भीख मागकर खाना शो नहीं
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