Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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बैनसम्प्रदायशिक्षा ।
९-डाक्टर पार्क नामक एक यूरोपियन विद्वान् प्राणिजन्य और वनस्पतिजन्य
आहार के विषय में लिख कर यह सूचित करता है कि-उत्तम मांस में उष्णता और उत्साह को उत्पन्न करनेवाला तत्त्व १०० भागों में ३ भ ग है और गेहूँ चाँवल तथा फलियों के अन्न में यह तत्व १०० भागों में १५ से लेकर ८० भागतक होता है, इसी प्रकार एडम स्मिथ नामक एक यूर पियन विद्वान् वेल्थ आफ नेशन्स ( Tealtli of nations. ) अर्थात् "जाओं की दौलत" नामक ग्रन्थ में लिखता है कि-मांस के विना खाये भी केवल अन्न, घी, दूध और दूसरी वनस्पतियों से शारीरिक और मानसिक शक्ति, पुष्टि और बहुत ही अच्छी तनदुरुस्ती रह सकती है। इसी प्रकार अन्ः भी बहुत से विद्वान् डाक्टर लोगों ने भी वनसति की ही खुराक को विशेष
पसंद किया है। १०-वैद्यक शास्त्र के विचार धर्म शास्त्रों से बहुत ही सम्बन्ध रखते हैं और धर्म
शास्त्रों का सारांश विचार कर देखने से यही विदित होता है कि- मनुष्य को मांस कदापि नहीं खाना चाहिये अर्थात् धर्मशास्त्रों में मांस के खाने की सख्त मनाई की गई है, क्योंकि "अहिंसा परमो धर्मः" यह सब ही धर्मशास्त्रों का सम्मत है अर्थात् आर्य वेद, स्मृति: पुराण आदि शास्त्रों का तो क्या कहना है किन्तु बाइविल कुरान और अवस्ता आदि ग्रन्थों का भी यही सिद्धान्त है कि-मांस कभी नहीं खाना चाहिये ।
जीवन के लिये आवश्यक खुराक । जीवन को कायम रखने के लिये जिस की निरन्तर आवश्यकता होती है उस खुराक के मुख्य पांच तत्त्व हैं--पौष्टिक ( पुष्टिकारक ), चरबीवाला, आटे के सत्ववाला, क्षार और पानी, देखो । अपने शरीर में जितने प्रकार के रत्व हैं उन सब का पोषण खुराक में स्थित इन्हीं पांचों तत्वों से होता है, इस लिये बही खुराक नित्य लेनी चाहिये कि जिस में ये पांचों प्रकार के तत्व स्थित हों, अब इन का संक्षेप से कम से कुछ वर्णन किया जाता है:पौष्टिक तत्त्व-शरीर के पोपण तथा वृद्धि के लिये पौष्टिक खुराक का लेना
-खो ! जैन सूत्रों में जगह २ मांस भक्षण का अत्यन्त निपंथ किया है । २-यद्यपि केन्हीं २ ग्रन्थों में प्रवृत्ति भीमानी है तथापि निवृत्ति में अधिक फल लिखा है परन्तु । ग्रन्थों में तो हिंसा का अत्यन्त निषेध ही किया है तथा दया को धर्म का मूल कहा है, इसीलिये संसार में दया की वाराकी जैनधर्म की विख्यात है, देखा ! किसी ने कहा है वि -दोहाशिवभक्ती अरु जिन दया, मसलमीन इकतार। तीन बात इकठी करो, उतरे वेड़ा पार ॥१॥ अर्थ इसका सरलही है । ३-इस को अंग्रेजी म नाइट्रोजन वाला कहते हैं। ४-इस को अंग्रेजी में स्टाची कहते हैं । ५-शेष छोटे २ तत्त्वों का समावेश इन्हीं पांच प्रकार के तत्वों में हो जाता है।
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