Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
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पानी में क्षार आदि पदार्थों का कितना परिमाण है इस बात को जाननेके लिये यह उपाय करना चाहिये कि - थोड़े से पानी को तौल कर एक पतीली में डालकर आग पर चढ़ा कर उस को जलाना चाहिये, पानी के जल जाने पर पतीली के पेंढे में जो क्षार आदि पदार्थ रह जावें उन को कांटे से तौल लेना चाहिये, बस ऐसा करने से मालूम हो जायगा कि इतने पानी में क्षार का भाग इतना है, यदि एक ग्यालन ( One gallon ) पानी में क्षार आदि पदार्थों का परिमाण ३० ग्रीन ( 30 Grains ) तक हो तब तक तो वह पानी पीने के लायक गिना जाता है तथा ज्यों २ क्षार का परिमाण कम हो त्यों २ पानी को विशेष अच्छा ना चाहिये, परन्तु जिस पानी में क्षार का भाग बिलकूल न हो वह पानी निर्मल होने पर भी पीने में स्वाद नहीं देता है ।
क्षार से मिला हुआ पानी केवल पीने में ही मीठा लगता हो यह बात नहीं है किन्तु क्षार से मिला हुआ पानी पाचनशक्ति को भी उत्तेजित करता है, परन्तु यदि पानी में ऊपर लिखे परिमाण से भी अधिक क्षार का परिमाण हो तो वह पानी पीने में सारी लगता है और खारी पानी हानि करता है ।
यद्यपि पानी को स्वच्छ अर्थात् निर्मल करने के बहुत से उपाय हैं तथापि उन सबों में से सहज उपाय वही है कि--जो जैन लोगों में प्रसिद्ध है अर्थात् पानी को उबाल कर पीना, इस की क्रिया इस प्रकार से है कि- सेर भर पानी को किसी स्वच्छ कलई के वर्त्तन में अथवा पतीली में भर कर अनि पर चड़ देना चाहिये तथा धीमी आंच से उसे औंटाना चाहिये, जब पानी का चतुर्थी जल जावे अर्थात् सेर भर का तीन पाव रह जावे तब उस को किसी मिट्टी के बर्तन में शीतल कर तथा छान कर पीना चाहिये, इस प्रकार से यह जल अति स्वच्छ गुणकारी और हलका हो जाता है तथा इस युक्ति से ( उबालकर ) शुद्ध किया हुआ पानी चाहे किसी भी देश का क्यों न पिया जावे कभी हानि नहीं कर सकता है !
पानी में थोड़ीसी फटकड़ी अथवा निर्मली के डालने से भी वह शुद्ध हो जाता है अर्थात् उसके ( फिटकड़ी वा निर्मली के ) डालने से पानी में मिले हुए सूक्ष्म रजःकण नीचे बैठ जाते हैं ।
पानी को बिना छाने कभी नहीं पीना चाहिये क्योंकि - विना छना हुआ पानी पीने से उस में मिले हुए अनेक सूक्ष्म पदार्थ पेट में जाकर बहुत हानि करते हैं, पानी के छानने के लिये भी मोटा और मज़बूत बना हुआ कपड़ा लेना चाहिये, क्योंकि बारीक कपड़े से छानने से पानी में मिले हुए सूक्ष्म पदार्थ वस्त्र में न रह कर पानी में ही मिले रह जाते हैं और पेट में जाकर हानि करते हैं
डाक्टरी क्रिया से भी पानी की शुद्धि हो सकती है और वह (क्रिया ) यह है कि-- एक मटकी की पेंदी में बारीक छिद्र ( छेड़ वा सूराख ) कर उस में आधे
४ इस जल को कल्पसूत्र में भी शुद्ध लिखा है ।। २-इस क्रिया को फिल्टर किया करते हैं ।
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