Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
१६९ उस पर मनुष्यों की और जानवरों की गन्दगी और मैल भी चला आता है, इस लिये ऐसी नदियों का जल पीने के लायक नहीं होता है, नल लगने से पहिले कलकत्ते की गंगा नदी का जल भी बहुत हानि करता था और इसका कारण वही था जो कि अभी ऊपर कह चुके हैं अर्थात् उस में स्नान मैल आदिकी गन्दगी रहती थी, तथा दूसरा कारण यह भी था कि-बंगाल देश में जल में दाग देने की (दाह क्रिया करने की) प्रथा के होने से मुर्द को गंगा में डाल देते थे, इस से भी पानी बहुत बिगड़ता था, परन्तु जब से उस में नल लगा है तब से उस जल का उक्त विकार कुछ कम प्रतीत होता है, परन्तु नल के पानी में प्रायः अजीर्णता का दोष देखने में आता है और वह उस में इसी लिये है कि-उस में मलिन पदार्थ और निकृष्टं हवा का संसर्ग रहता है। । बहुत से नगरों तथा ग्रामों में कुँए आदि जलाशय न होने के कारण पानी की तंगी हाने से महा मलिन जलवाली नदियों के जल से निर्वाह करना पड़ता है, इस कारण वहां के निवासी तमाम बस्तीवाले लोगों की आरोग्यता में फर्क आ जाता है, अर्थात् देखो । पानी का प्रभाव इतना होता है कि-खुली हुई साफ हवा में रहकर महनत मजूरी कर शरीर को अच्छे प्रकार से कसरत देनेवाले इन ग्राम के निवासियों को भी ज्वर सताने लगता है, उन की वीमारी का मूल कारण केवल मलिन पानी ही समझना चाहिये। __ इस के मिवाय-जिस स्थान में केवल एक ही तालाव आदि जलाशय होता है तो सब लोग उसी में स्नान करते हैं, मैले कपड़े धोते हैं, गाय; ऊँट; घोड़े; बकरी और भेड़ आदि पशु भी उसी में पानी पीते हैं, पेशाव करते हैं, तथा जानवरों को भी उसी में स्नान कराते हैं और वही जल बस्तीवाले लोगों के पीने में आता है, इस से भी बहुत हानि होती है, इस लिये श्रीमंत सर्कार, राजे महाराजे तथा
१-जैसे दक्षिण हैदराबाद की मूसा नदी इत्यादि । २-परन्तु शतशः धन्यवाद है उन परोपकारी मल मन्त्री वस्तुपाल तेजपाल आदि जैन श्रावकों को जिन्हों ने प्रजाके इस महत् कष्ट को दूर करने के लिये हजारों कुँए, वावड़ी, पुष्करिणी और तालाब बनवा दिये ( यह विषय उन्हीं के इतिहास में लिखा है ), देखो-जेसलमेर के पास लोद्रवकुण्ड, रामदेहरे के पास उदयकुंड और अजमेर के पास पुष्कर कुँड, ये तीनों अगाध जलवाले कुंड सिंधु दंश के निवासी राजा उदाई की फौज में पानी की तंगी होने से पद्मावती देवी ने (यह पद्मावती राजा उदाई की रानी थी, जब इस को राग्य उत्पन्न हुआ तव इस ने अपने पति से दीक्षा लेने की आज्ञा मांगी, परन्तु राजा ने इस से यह कहा कि-दीक्षा लेने की आज्ञा मैं तुम को तब दूंगा जब तुम इस बात को स्वीकार करो कि “तप के प्रभाव से मर कर जब तुम को देवलोक प्राप्त हो जावे तब किसी समय संकट पड़ने पर यदि मैं तुम को याद करूं तब तुम मुझ को सहायता देओ" रानी ने इस बात को स्वीकार कर लिया और समय आने पर अपने कहे हुए वचन का पालन किया) वनवाये, एवं राजा अशोकचन्द्र आदिने भी अपने चम्पापुरी आदि जल की तंगी के स्थानों में वृक्ष, सड़कें और जल की नहरें वनवाना शुरू कियाथा, इसी प्रकार मुर्शिदाबाद में अभी जो गंगा है उन को पद्दा नाम की बड़ी नदी से नाले के रूपमें निकलवा कर जागत् सेठ लाये थे, ये सब बातें इतिहास से विदित हो सकती हैं।
१५ जै० सं० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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