Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
हना चलती है तब उस के चलने से बिगड़ी हुई हवा भी छिन्न भिन्न होकर नष्ट हो जाती है अर्थात् सब वायु स्वच्छ रहती है, उस समय प्राणी मात्र श्वास लेते हैं तो प्राणवायु को ही भीतर लेते हैं और कार्बोनिक एसिड ग्यस को बाहर निकालते हैं, परन्तु वृक्ष और वनस्पति आदि इस से विपरीत क्रिया करते हैं अर्थात् वृक्ष और वनस्पति आदि दिन को कार्वन को अपने भीतर चूस लेते हैं तथा प्राणवायु को शहर कालते हैं, इस से भी वायु के आवरण की हवा शुद्ध रहती है अर्थात् दिन को वृक्षों की हवा साफ होती है और रात को उक्त वनस्पति आदि प्राणवायु को अपने भीतर खींचते हैं और कार्बोनिक एसिड ग्यस को बाहर निकालते हैं, परन्तु इस में भी इतना फर्क है कि-रात को जितनी प्राणवायु को वनस्पति आदि अपने भीतर खींचते हैं उस की अपेक्षा दिन में प्राणवायु को अधिक निकालते हैं, इस लिये रात को वृक्षों के नीचे कदापि नहीं सोना चाहिये, क्योंकि रात को वृक्षों के नीचे सोने से आरोग्यता का नाश होताहै ।
इस प्रकार से ऊपर कही हुई हवा एक दूसरे के साथ मिलने से अर्थात् पवन और वृषों के संग होने से साफ होती है, इस के सिवाय वरमात भी हवा को साफ करने में सहायता देती है।
इस प्रकार से हवा की शुद्धि के सब कारणों को जानकर सर्वदा शुद्ध हवा का ही सेवन करना चाहिये, क्योंकि-शुद्ध हवा बहुत ही अमूल्य वस्तु है, इसी लिये सद् वैद्यों क यह कथन है कि-"सौ दवा और एक हवा" इस लिये स्वच्छ हवा के मिलने का यत्न सदैव करना चाहिये ।
वस्ती की हवा दबी हुई होती है, इस लिये-सदा थोड़े समय तक बाहर की खुली हुई स्वच्छ हवा को खाने के लिये जाना चाहिये, क्योंकि इस से शरीर को बहुत ही लाभ पहुंचता है तथा फिरने से शरीर के सब अवयवों को कसरत भी मिलती है, इसलिये ताजी हवा का खाना कसरत से भी अधिक फायदेमन्द है।
यद्य पे दिन में नो चलने फिरने आदि से मनुष्यों को ताजी हवा मिल सकती है परन्तु रात को घर में सोने के समय साफ हवा का मिलना इमारत बनानेवाले चतुर कारीगर और वास्तुशास्त्र को पढ़े हुए इजीनियरों के हाथ में है, इसलिये अच्छे : चतुर इञ्जीनियरों की सन्मति से सोने बैठने आदि के सब मकान हवादार बनवाने चाहिये, यदि पूर्व समय के अनभिज्ञ कारीगरों के बनाये हुए मकान हों तो उन को सुधरा कर हवादार कर लेना चाहिये।
१-देखो ! जैनाचार्य श्रीजिनदत्तमरिकृत विवेकविलासादि ग्रन्थों में रात को वृक्षों के नीचे सोने का अत्यन्त ही निषेध लिखा है, तथा इस बात को हमारे देश के निवासी ग्रामीण पुरुष तक जानते हैं और कहते हैं कि-रात को वृक्ष के नीचे नहीं सोना चाहिये, परन्तु रात को वृक्षों के नीचे क्यं नहीं सोना चाहिये, इस का कारण क्या है, इस बात को विरले ही जानते हैं । २-अर्थात शुद्ध हवा सौ दवाओं के तुल्य हैं।
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