Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
ज्ञानसे युक्त व्रत नियम आदि का पालन ही किया, उस मनुष्य ने जन्म लेकर पशुओं के समान ही पृथिवी को भार युक्त किया और अपनी माता के यौवनरूपी बन को काटने के लिये कुठार (कुल्हाड़ा) कहलाने के सिवाय और कुछ भी नहीं किया। स्वभावजन्य अर्थात् कुदरती नियम से होनेवाली
हवा की शुद्धि। प्रिय पाठक गण ! पांचों समवायों के योग से प्रथम तो बिगड़ती हुई हवा को बन्द करने में ( रोकने में) मनुष्यों का उद्यम है, उसी प्रकार से काल आदि चारों समवायों के मिलने से भी हवा को साफ करने का पूरा साधन उपस्थित है, यदि वह न होता तो सृष्टि में उत्पत्ति और स्थिति भी कदापि नहीं हो सकती।
जिस प्रकार से ये साधन इन ही समवायों से विगढ़ कर प्राणियों का प्रलय करते हैं-उसी प्रकार से ये ही पांचों समवाय परस्पर मिलने से बिगड़ी हुई हवा को साफ भी करते हैं, किन्हीं लोगों ने इन्हीं समवायों के सम्बन्ध को ईश्वर मान लिया है, अस्तु, हवा में चलनस्वभाव रूप धर्म है उसी से वह विगड़ी हुई हवा को अपने झपटे से खींच कर ले जाती है अर्थात् उस के झपटे से दुष्ट एरमाणु छिन्न भिन्न हो जाते हैं, और ताजी हवा के न मिलने से जितनी हानि पहुँचने को थी उतनी हानि नहीं पहुँचती है, क्योंकि-उपर लिखी हुई वह हवा एक दूसरे संग इस प्रकार से मिल जाती है जैसे थोड़ा सा दूध पानी में मिलानेसे बिलकुल एकमेक (तत्स्वरूप) हो जाता है तथा जिस प्रकार से पवन का वेग होने पर चूल्हे का धुंआ छिन्न भिन्न होकर थोड़ी देर पीछे नहीं दीखता है उसी प्रकार श्वास आदि के लेने से विगड़ी हुई सब हवा भी उसी झपटे से छिन्न भिन्न होकर अधिक परिमाणवाली स्वच्छ हवा में मिलकर पतली हो जाती है इसी लिये वह कम हानि पहुँचाती है।
हवा किसी समय अधिक और किसी समय कम चलती है, क्योंकि-हवा में वैक्रिय शरीर के रचने का स्वभाव है, जिस समय मन को प्रसन्न करनेवाली ताज़ी
-शास्त्रों में लिखा है कि-" प्रसूतान्ते यौवनं गतम्" अथात् स्त्री के सन्तान होने के पीछे उसका यौवन चला जाता है ॥ २-इस का उदाहरण यह है कि-जैसे देखो! कृष्णमहाराज एक थे परन्तु सव रानियों के महलों में नारदजीने उनको देखाथा, इस का कारण यही था कि-वे वैक्रिय शरीर की रचना कर लेते थे, यदि किसी को इस विषय में शंका हो तो वे वैक्रिट रचना के इस दृष्टान्तसे शंका निवृत्त हो सकती हैं कि-जैसे पुरुषचिन्ह पड़ी दशा में केवल · । अंगुल का होता है परन्तु देखो! वही तेजी की दशा में कितना बढ़ जाता है, इसी प्रकार से वायु भी वैक्रिय शरीर की रचना करता है, अथवा दूसरा दृष्टान्त यह भी है कि-जैसे किरड जानवर अनेक प्रकार के रंग बदलता हैं उसी प्रकार वैक्रिय शरीर की भी शक्ति जाननी चाहिये।
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