Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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उन को मारा, क्योंकि हवा के कम आवागमनवाली वह छोटी सी कोठरी थी, उस में बहुत से मनुष्यों को भरदिया गया था, इस लिये उन के श्वास लेने के द्वारा उस कोठरी की हवा के बिगड जाने से उन का प्राणान्त होगया, इसी प्रकार से अस्वच्छ हवा के द्वारा अनेक स्थानों में अनेक दुर्घटनायें हो चुकी हैं, इस के अतिरि । हवा के विकृत होने से अर्थात् स्वच्छ और ताजी हवा के न मिलने से बहुत रं: मनुष्य यावज्जीवन निर्बल और बीमार रहते हैं, इस लिये मनुष्यमात्र को उमित है कि-हवा के विगाड़नेवाले कारणों को जान कर उन से बचाव रख कर सदा स्वच्छ हवा का ही सेवन करे जिस से आरोग्यता में अन्तर न पड़ने पावे. हवा को बिगाड़नेवाले मुख्य कारण ये हैं:१-श्वास के मार्ग से निकलनेवाली अशुद्ध हवा स्वच्छ हवा को बिगाड़ती है,
देखा ! हम सब लोग सदा श्वास लेते हैं अर्थात् नासिका के द्वारा स्वच्छ वायु को वींच कर भीतर ले जाते और भीतर की विकृत वायु को बाहर निकालते हैं, उसी निकली हुई विकृत वायु के संयोग से बाहर की स्वच्छ हवा बिगड़ जाती है और वही बिगड़ी हुई हवा जब श्वास के द्वारा भीतर जाती है तब हानिकारक होती है अर्थात् आरोग्यता को नष्ट करती है, यद्यपि मनुष्य अपनी आरोग्यता को स्थिर रखने के लिये प्रतिदिन शरीर की सफाई आदि करते हैं-- अर्थात् रोज़ नहाते हैं और मुख तथा हाथ पैर आदि अंगों को खूब मल मल कर धोते हैं, परन्तु शरीर के भीतर की मलिनता का कुछ भी विचार नहीं करते हैं, यह अत्यन्त शोक का विषय है, देखो : श्वासोच्छास के द्वारा जो इवा हम लोग अपने भीतर ले जाते हैं वह हवा शरीर के भीतरी भाग को नाफ करके मलिनता को बाहर ले जाती है अर्थात् श्वास के मार्ग से बाहर निकली हुई हवा अपने साथ तीन वस्तुओं को बाहर ले जाती है, वे तीनों वस्तुयें ये हैं --१-कार्बोनिक एसिड ग्यस, २-हवामें मिला हुआ पानी
और तीसरा दुर्गन्धयुक्त मैल, इन में से जो पहिली वस्तु ( कार्शनिक एसिड मेर ) है वह स्वच्छ हवा में बहुत ही थोड़े परिमाण में होती है, परन्तु जिस हवा को हम अपने श्वास के मार्ग से मुंह में से बाहर निकालते हैं उस में वह जहरीली हवा सौगुणा विशेष परिमाण में होती है परन्तु वह सूक्ष्म होने से देखती नहीं है, किन्तु जैसे-अग्नि में से धुंआ निकलता जाता है उसी प्रकार से हम सब भी उस को अपने में से बाहर निकालते जाते हैं तथा जैसे--एक सँकड़ी कोठरी में जलता हुआ चूल्हा रख दिया जावे तो वह कोठरी शीघ्र ही धुंए से व्याप्त हो जायगी और उस से स्वच्छ हवा का प्रवेश न हो
१-इस लिये योगविद्या के तथा स्वरोदय ज्ञान के वेत्ता पुरुष इसी श्वास के द्वारा कोई २ नेती, धोती और वस्ति आदि क्रियाओं को करते हैं, किन्तु जिन को पूरा ज्ञान नहीं हुआ है-ते कभी २ :स क्रिया से हानि भी उठाते हैं, परन्तु जिन को पूरा ज्ञान होगया है वे तो श्वासके द्वारा ही सब प्रकार के रोगों को भी मिटा देते हैं।
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